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रघुवरजसप्रकास
[ २३६ तुक प्रत बेबे कंठ तव, रा रा सबद सरास । कहै नाम जिण गीतकौं, हंसावळी सहास ॥ १३५
স্মথ वेलिया सांणौर गीतरै तुकप्रत बेबे अनुप्रास एक सरीखा होवै। सोळे तुकांमें बतीस कंठ होवै सौ गीत हंसावळी सांणौर कहावै ।
अथ गीत हंसावळारौ उदाहरण
गीत सतरा हरचंद सुमतरा सागर, चितरा विलंद सुदतरा चाव । वतरा व्रवण प्रभतरा वाधण, नतरा तार सुक्रतरा नाव ॥ वनरा वांस समनरा काज वस, पुनरा निध तनरा आपांण । भय मेटण जनरा भन भनरा, महदनरा मनरा महरांण ॥ रिखरा निज मखरा रखवाळण, दुखरा तन लखरा जन दाह । धखरा खळ मुखरादस धड़चण, नरपखरा पखरा निरबाह ॥ सुखकररा थिररा वासी सुज, संकररा उररा सामाथ । वररा सीत तार गिरवररा, हररा अघ रघुबररा हाथ ॥१३६
१३५. कंठ-अनुप्रास । सरास-रसपूर्ण । सहास-आनंदपूर्वक, हर्षपूर्वक । १३६. सतरा-सत्यका। हरचंद-राजा हरिश्चंद्र । सुमतरा-सुमतिका । चितरा-चितके ।
विलंद-महान, बड़ा । सुदतरा-श्रेष्ठ दानका। चाव-उमंग । वतरा-धनका । व्रवणदेने वाला । प्रभतरा-यशका, कीतिका । वाधण-बढ़ाने वाला । नतरा-नहीं तैर सकने वाला पापी, पर्वतादि । तार-तैराने या उद्धार करने वाला । सतरा-श्रेष्ठ कार्यका। समनरा-देवताओंका। काज-काम । पुनरा-पुण्यका । निध (निधि)-खजाना । तनराशरीरका। प्रापांण-शक्ति, बल। महरांग (महार्णव)-समुद्र । रिखरा-ऋषिका । मखरा-यज्ञका । रखवाळण-रक्षा करने वाला। लखरा-लाखोंका। धखरा-द्वषका, कोपका। खळ-राक्षस । मखरादस-रावण । धड़चण-मारने वाला, काटने वाला। नरपखरा- जसका कोई पक्ष या सहायक न हो। पखरा-पक्षका । निरबाह-निभाने वाला। थिररा-पथ्वीका। सामाथ-समर्थ । तार-तैराने वाला। गिरवररापर्वतोंका। अघ-पाप ।
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