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________________ २४० । रघुवरजसप्रकास अथ गीत रसखरा लछण दूहा धुर सोह बीती चवद, चौथी दस मत चाह । पंच छठी सप्तम चवद, धुर बीती पंचम छठी, मिळ चौथीसूं आठमी, भल तुकंत लघु भेळ ॥ १३८ नगरक भगण तुकंत खट, तगण जगण चव आठ । सुकव रसखरौ गीत सौ, पढ जस राघव पाठ ॥ १३६ दस आठमी सराह ॥ १३७ सप्तम खट तुक मेळ । अरथ पै'ली तुक मात्रा सोळ होवे । दूजी तुक मात्रा चवदे होवें । तीजी तुक मात्रा चवदै हो । चौथी तुक मात्रा दस होवै । पांचमी तुक मात्रा चवदै हो । छठी तुक मात्रा चवदै होवै । सातमी तुक मात्रा चवदै होवै । श्राठमी तुक मात्रा दस होवै । पैली, दूजी, तीजी, पांचमी, छठी, सातमी तुकां मिळ । यांछ ही तुकांरै अंतमें नगण तथा भगण तुकांतमें आवै अर चौथी तुक प्राठमो । ज्यां दोयांरे तुकांत नगण तथा जगण होवै, जी गीतरौ नांम रसखरौ कहीजै । गुरुवंत है । हिरणप रसखरारौ ब्रेक लछण छै । सूं अथ गीत रसखरारी उदाहरण गीत सुज रूप भूप अनूप स्यांमळ, जेम बरसण घटा छिब जळ । व अंबर पीत वीजळ, सुकव क्रीत सराह ॥ १३७. धुर-प्रथम । बो- दूसरी । ती-तीसरी । चवद - चौदह । मत - मात्रा | १३८. खट छ । १३६. नगणक - नगरण । चव- कह । सुकव- श्रेष्ठ कवि । यां-इन । ज्यां-जिन । दोयांरैदोनोंके । जीं - जिस । गुरुवंत - वह जिसके अन्तमें गुरु हो । Jain Education International नोट - मूल प्रतिमें गुरुवंत शब्द लिखा मिला। यहां पर लघ्वांत होता तो ठीक रहता क्योंकि रसखरा गीत में सर्वत्र अन्त लघु वर्ण ही होता है । १४०. स्यांमळ - श्याम, कृष्ण । बरसण-वर्षा । छिब- कांति । अंबर - वस्त्र, ग्राकाश । पीतपीला । वीजळ - बिजली, विद्युत सराह - प्रशंसा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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