________________
रघुवरजसप्रकास
[ २७६ तीन कंठ होय । यूंही सारा गीतरी प्रेक तुक प्रत कंठ तीन तीन गुरु कंठ होय । हारे तुकंत लघु होय । और सारा ही गीतरा दूहां प्रत मात्रा प्रमांण कहां छां । पै'लो तुक मात्रा चाळीस होवै । दूजी तुक मात्रा छावीस होवै । तीजी तुक मात्रा ठावीस होवे | चौथी तुक मात्रा छावीस होवै। यूं तीन ही लारला दवाळां मात्रा होवे, जिण गीतनै काछौ कहीजै । चार ही तुकां मात्रा सम नहीं, जीसूं असम चरण छंद छै ।
ग्रंथ गीत काछौ उदाहरण गीत
पहपत रघुपती दत भौक पांणां ।
वदत सुज कथ वेद-वांगां सधर पांणां साहणौ । सारंग बांणां, जुध सझांणौ पण मुड़ांणां पूठ ॥ सुखवर सुरांगां, गौ दुजांणां माघवांणां सुख मिळे | मह जिग मंडांणां थांगथांगां दैत घांणां दृठ ॥ धनक सायक भुजाधारी, तेण रज रिख नार तारी पायचारी पंथ |
"
मिथळा विहारी स्त्रीमुरारी रमां नारी रंज ॥ पह छत्रधारी मिळ पारी मांग हारी मंडळी । धनु जेणवारी रावणारी जटाधारी भंज ॥
Jain Education International
२२१. यूंही - ऐसे ही ।
२२२. पहपत ( पृथ्वीपति ) - राजा । दत दान | भौक-- धन्य धन्य । पांणां-हाथों | वदतकहता है । सुज - वह । कथ कथा । वेद-बांणां - वेदवाणी । सधर - दृढ़ । साहणौधारण करने वाला । सारंग - विष्णुके धनुषका नाम । वांणां-तीरों, बारणों । सुरांणांदेवताओं । दुजांणां - ब्राह्मणों । माघवांणां - इन्द्र । मह - पृथ्वी, महान । जिग-यज्ञ । मंडांणां रचा गया । थांणयांणां स्थानों स्थानों । दैत- दैत्य | घांणां-नाश । दृठदु । धनक-धनुष । सायक- वारण, तीर । तेण उस । रज-धूलि । रिख-ऋषि । पायचारी - पदचारी | पंथ में मार्ग में । रमां शत्रु ग्रों। रंज-दुख । पह-योद्धा ! छत्रधारी - राजा । श्रपारी- असीम। मांण-मान, गर्व | मंडळी - समूह। धनु-धनुष । जेणवारी - जिस समय । जटाधारी महादेव । भंज-तोड़ दिया ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org