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________________ २८० ] रघुवरजसप्रकास पित आय सचित प्रकासे, वीर वट-पंच वासे , असुर नासे पाहवां । भय मेट दासे विरद भासे, खळां त्रासे खूर ॥ पड़ लंक पासे जंग जासे, अत प्रकासे प्रावधां । ग्रीधां ढीगासे मांस ग्रासे, सुज हुलासे सूर ॥ करणभूपत देव काजा, मांण रख गौदुज समाजा , क्रीत पाजा दध कहै । ते सुकव ताजा ब्रवण बाजा, गजां राजा गांम ॥ छज ऊच छाजा दिलदराजा, जेत वाजा जंगियं । लख राख लाजा संत साजा, महाराजा राम ॥ २२२ ___ अथ गीत सवैयौ वरण छंद लछण दोय सगण पद च्यार दख, पंचम चव सगणांण । सावझड़ौ कह चरण ब्रती, जिको सवायौ जाण ॥ २२३ प्ररथ सवायौ गीत वरण छंद होय जिणरै तुक पांच, दूहा अंक प्रत होय । तुक श्रेक प्रत सगण दोय आवै । अखिर छ प्रावै । इसी तुक च्यार होय । पांचमी तुकमें च्यार सगण गण पड़े । अखिर बारा होय । पांच ही तुकारा मोहरा मिळे , जिणसू सावझड़ो सवायौ गीत जांणजे । अथ गीत सवैयौ उदाहरण गीत थिर बूध थटौ क्रतहीण कटौ, दुख ओघ दटौ मह पाप मटौ । रिववंसतणौ रिव राम रटौ ॥ २२२. वट-पंच-पंचवटी। वासे-निवास किया। नासे-नाश किया । पाहवां-युद्धों। खळां राक्षसों । खूर-समूह । ढोगासे-ढेर, समूह । ग्रासे-भक्षण किया। हुलासे-प्रसन्न हए । सूर-सूर्य । दुज-ब्राह्मण । क्रीत-कीति । पाजा-पुल । दध-समुद्र, सागर । ब्रवणदेने को। बाजा-घोड़े। छज-शोभा। ऊंच-ऊंची। छाजा-शोभा देती है। दिलदराजा उदार दिल, दातार । २२३. दख-कह । चव-कह । सगणांण-सगण गण । अखिर-अक्षर । २२४. थिर-स्थिर, अटल। बुध-बुद्धि। थटौ-धारण करो । कतहीण-पाप । कटौ-काट डालो। ओघ-समूह । दटौ-नाश कर दो। मह-महान । मटौ-मिटा दो। रिववंसतणौ-सूर्यवंशवा। रिव-सूर्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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