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१५८ ]
रघुवरजसप्रकास
अथ चौवीस अखिर छंद जात संस्क्रति
दूहौ
आठ भगर किरीट कहि, आठ स दुमिळा थात | सौ, महाभुजंगप्रयात ॥ १६७
आठ यगण पद परत
छंद किरीट
कौटिक तीरथ धाय कौंटिकरौ व्रत कौटिक ज्याग करौं,
मेरु कौटिकरौ गवदांन दुजेसर || कौटिक जोग ठंग सधौ,
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( ८ भ . )
करौ,
देह बिया करि ।
अरु कौटि तपौ तप नेम धराबर |
ये 'किसना' सुपने न कहं ू,
यक स्त्री रघुनायक नांम बराबर || १६८ छंद दुमिला ( ८ स . )
जर
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नैन दियौ जननी जठरा हरि धाय कैय सिहाय कियौ | जनम्यौ जबते जिन पोख रख्यौ तन त्रय तौखते टारि लियौ || तरुनाईमें पहि ईस भयौ, जगदीसकं
मूरख भूलि
गियौ ।
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१६७. चौवीस प्रखिर छंद- चतुर्विंशत्याक्षरावृत्ति । इस वृत्तिका शुद्ध नाम संस्कृति भी है। जिसके अंतर्गत १६७७७२१६ वृत्त प्रस्तार भेदसे बनते हैं । स- सगरण । थात- होता है । १६८. कौटिक - करोड़ । कौटि-करोड़ । बिथा- कष्ट । ज्याग - यज्ञ । श्रसमेध - श्रश्वमेध |
गवदांन - गौ दान | दुजेसर ( द्विजेश्वर ) - महर्षि, ब्राह्मण । जोग- श्रटंग (अष्टाङ्ग योग ) - अष्टाङ्ग योग । सधौ - साधन करो । यक - एक ।
१६६. जठरा- जठर, गर्भ । पोख- पालन-पोषण । तरुनाई - युवावस्था । ईस - समर्थ |
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