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________________ रघुवरजसप्रकास । १५९ 'किसना' भजि राम सियावरको , जिन चांच बनायके चं न दियौ ॥ १६६ ___ छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) मुख मंगळ नाम उचार सदा तन के अघ अोधन दाघव रे । हनमंत बिभीखन भांन तनै जिन कीन बडे जन लाघव रे॥ भुजगेस महेस दुजेस रिखी नित पै रज चाहत माधव रे । तजि ांन उपाय सबै 'किसना' भज राघव राघव राघव रे ॥१७० छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) बयकं ट बिलासनको तजि के बध कौन चहैं जमपासनकी। मृगराज पळासन त्यागनके चित ह स धरौ नहि घासनकी॥ कबहू नहि मंगत और पिया तजि संगत गौर व्रखासनकी। रघुनाथ जु रावरे दासनके चित आसन ांन उपासनकी ॥१७१ छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) हम कीन अनेक गुन्हैं हरिजू तुम एक न लेख उतारिएजू । हम पापि महा जिद काहै करै, ब्रिद रावरकी पर पारिएजू॥ कुरुनामय राघव जानकीवल्लभ ए विनती उर धारिएजू । गुन छोडि हमारि ये बावरि बांनको रावर ओर निहारिएजू ॥१७२ १६६. चूंन (चूर्ण)-भोजन । १७०. बिभीखन-विभीषण । कीन-किया। भजगेस-शेषनाग। महेस-महादेव । दुजेस (द्विजेश)-महर्षि । रिखी-ऋषि । प्रान-अन्य । १७१. बिलासन-विलास करने वाला। बध-बंधन । मृगराज (मृगराज)--सिंह । पळासन आमिषहारी। हंस-अभिलाषा, इच्छा । १७२. कोन-किये । गुन्हें-अपराध। पर-प्रतिज्ञा, मर्यादा। बान-वाणी। ओर-तरफ। निहारिएजू-दे खए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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