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रघुवरजस प्रकास
छंद सुंदरी ब्रज भाखा (भ.भ.भ.भ.भ.भ.भ.ग.)
आसन स्यंघ घटा तन स्यांम, पटंबर पीतसु विद्युत है । चाप सिलीमुख पांन विमोह सु बांम विभाग सिया जुत है ॥ त्यात केकौ कर चौर अनंत विनै कत है । पाय पलौटत वात-तनै यह ध्यान रघुब्बर राजत है ॥१६३ छंद मत्तगयंद (भ.भ.भ.भ.भ.भ.भ.ग.ग.)
गौतम नार सुपाहन तैं रज पाय लगे रघुनायक तारी । पांर जात पुलिंद जु बोरसु जेवत स्रीमुख बार न धारी ॥ हाथन तैं करिस्राध जटायुसु पायनकी रजके सहि झारी । सौ रघुनाथ विसार भजै, अन तौ नर मूरख वात विगारी ॥ १६४
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छंद चकोर लछरण चौपई
सात भगा गुरु लघु जिण अंत, तिनं चंद चकोर तवंत ॥१६५
छंद चकोर ( भ.भ.भ.भ.भ. भ. भ. ग.ल.)
स्त्रीरघुनाथ नाथ सिहायक दायक नौ निधि बंछित दांन । रावण से खळ घायक संगर माधव है सब लायक मांन ॥ पूरण हम ईस प्रथीप धेरै धनु सायक पांन । सौ सियाराम भज्यौं नहिं नेक जनम ब्रथा जगमें जिहिं जांन ॥१६६
१६३. पटंबर-पीत वस्त्र । विद्युत - बिजली । चाप-धनुष । सिलीमुख ( शिली - मुख ) - बारण, तीर । पान - हाथ। बांम-बायां । सिया- सीता । जुत-युक्त । त्यो - ऐसे ही 1 रिहा - शत्रुघ्न । वात-तने (वात तनय ) - वायु-पुत्र हनुमान ।
१६४. नार-नारी, स्त्री । पाहन - पत्थर । रज-धूलि । पुलिंद -एक प्राचीन असभ्य जाति । बार - देरी, विलंब । विसार भूल कर । अन- अन्य । १६६. सिहायक - सहायक । दायक - देने वाला । नौ-नव । वंछित वांछित, प्रभीष्ट । धायक - मारने वाला । संगर-युद्ध । श्रज - ब्रह्मा । ईस - महादेव । प्रथीप - राजा । सायक - बाण, तीर । पांन ( पारिण) - हाथ । जिहि- जिसका ।
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