SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ ] रघुवरजसप्रकास छंद हंसी ( म.म.त.न.न.न.स.ग.) ८,१४ सारी बातां नीकी सोहै, रघुबर जस सह जग यम साखै 1 भाळौ रूड़ौ खोजै सेगा, भव स सि निगम भ्रहम रवि भाखै ॥ मौरा सौ हौ, समरण कर छिन छिन सुख मूळ । जाडा पापां दाहै जेही, तिलकरण दहण अगरण-मण तूळ ॥१६० दूहौ सात भगण मदिरा वदै, सात भगण दो गुरु मिळ, गुरु सुंदरी कहंंत | मत्त गयंद मुणंत ॥ १६१ छंद मदिरा ( भ भ भ भ . भ . भ . भ . ) रांम अभंगम सोभत जंग धनू सर हाथ सुधारण । रांम समाथ कहै जग गाथ तकौ सर पाथर तारण ॥ Jain Education International राम दयाळ नात्रय पाळ अनेक अनाथ उधारण । पारस रांम सरै सब कांम चवौ अठ-जांमसु चारण ॥ १६२ साख- साक्षी देता है । रूड़ौ । निगम - वेद । भ्रम - ब्रह्मा । १६०. नीकौ - उत्तम, श्रेष्ठ । सोहै- शोभा देता है । यम- ऐसे । उत्तम | सेणा - सज्जन । भव- महादेव । ससि चंद्रमा रवि - सूर्य । माधौ - माधव । राधौ - राघव, श्रीरामचंद्र । एहौ - ऐसा । छिनछिन-क्षरण-क्षरण | जाडा - घना, अधिक । दहण जलाने वाला । श्रगण-मणअगणित मन । तूळं - रूई । केसौ- केशव । नोट- हंसी छंदको इक्कीस अक्षरोंके वृत्तों में लिखा है परन्तु वास्तवमें यह वृत्त २२ वर्णका होता है । १६१. वदे - कहते हैं । मुणत - कहते हैं । १६२. अभंगम - नहीं टूटने वाला धनू-धनुष । समाथ - समर्थ । गाथ- कथा, वृत्तांत । तकौ - वह, उस । सर-सागर, समुद्र । पाथर - पत्थर । तारण- तारने वाला, तैराने वाला । श्रनात्रय- जिसका कोई आश्रय न हो । पाळ - पालन करने वाला। उधारण - उद्धार करने वाला । सर-सफल होते हैं । चवौ - कहो | नोट- मदिरा छंद २२ अक्षरका वर्ण वृत्त होता है जिसमें ७ भगरणके बाद एक दीर्घ वर्ण होना श्रावश्यकीय माना गया है परन्तु यहां पर केवल सात भगरण ही दिये गये हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy