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________________ १० ] रघुवरजसप्रकास दूहौ नपुर रसना भरण फणि, चांमर कुंडळ हिमेण । मुग्ध वक्रमांणसु वलय, हारसु गुरु यकेण ॥ ३२ द्विमात्रा द्विलघु भेद नाम दूही निज प्रिय कहिये परम प्रिय, दु लघु द्वि मत्ता नाम । गुण यम मात्रा पंच गण, रट कीरत रघुराम ॥ ३३ अथ साधारण गण नांम दूहा . आयुध गण कह पंच कळ, दुज तुरंग कळ च्यार । करण दु गुरु प्रिय दोय लघु, लघु गुरु ध्वज गुरु हार ॥ ३४ तविया गण एता तकौ, समझण छंद सुजाण । ल कहिये समझे लघु, ग कहिये गुरु जाण ॥ ३५ अथ सोडस करम वरणण दूहा संख्या प्रस्तर सूचिका, नस्ट उदिस्ट सुमेर । ध्वजा मरकटी जांण सुध, अाठू करम अफेर ॥ ३६ आठ सुमत्ता करम श्रे, आठ वरण अपणाय । पिंगळ मत श्रे कवि पढ़े, सोड़स करम सुभाय ॥ ३७ ३२. यकेण-एक । ३३. गुण-समझ । यम-इस प्रकार । ३५. तविया-कहे। ३६. प्रस्तर-प्रस्तार । सुध-(सुधि) विद्वान् । अफेर-पटल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelik www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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