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रघुवरजसप्रकास बोलै साख त्रिकुट लिछमीबर , उमंग रीसवाळी अवधेस्वर । मथ रिण उदध मांण दसमथका ,
आपण सरण भभीखण अथका । सोबन गढ जस अोप समथका , क्रपा कोप आखै दसरथका ॥ १८ अथ गीत दुमेळ सावझड़ौ उदाहरण
गीत जिण मुख जोवतां दुख प्राचत जावै । थरू अाथ घर नवनिध थावै ॥ नाम लियां जम-किंकर नासै । सौ राघव संकर उर वासै ॥ बीर जगत अखिया रघुबीरा । साचै दिल भखिया सवरीरा ॥ दुल्लभ देव रिखां बिरदाळौ । बल्लभ जनां दासरथवाळी ॥ तिण रघुनाथ वहत मग तारी ।
निज पग रजहंता रिख नारी ॥ ६८. साख-साक्षी। त्रिकुट-लंका। लिछमीबर-विष्णु, श्रीरामचंद्र । अवधेस्वर-रामचंद्र ।
मथ-मंथन कर। रिण-युद्ध । उदध (उदधि)-सागर, समुद्र। मांण-मान, गर्व । दसमथका-रावणका । प्रापण-देने वाला। भभीखण-विभीषण । अथका-धन-दौलतका ।
सोबन-सुवर्ण, सोना। समथका-समर्थका । पाखै-कहते हैं। ६६. प्राचत-पाप, दुष्कर्म । थरू-अटल, स्थिर । पाथ (अर्थ)-धन-दौलत । थावे-होते हैं ।
जम-किंकर-यमराजका दूत । नासै-भग जाते हैं। वास-निवास करता है, बसता है। भखिया-खाये, भक्षण किये। सवरीरा-शबरीके, भिल्लनीके । दुल्लभ-दुर्लभ । रिखांऋषियों। बिरदाळौ-बिरुदधारी। बल्लभ-प्यारा। जनां-भक्तों। दासरथवाळौदशरथका पुत्र, श्रीरामचंद्र भगवान । तिण-उस। वहत-चलते हुए। मग-मार्ग । तारी-उद्धार किया। रजहूंता-धूलिसे । रिख-ऋषि ।
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