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रघुवरजसप्रकास
[ २२१ भारथ खळ जाड़ा भानंखी । धाड़ा एक बीर धानखी ॥ लंका मार दसाणण लेणौ । दांन भभीखण सेवग देणौ ॥ तोटौ केम रहै घर त्यारे । रांम धणी मोटौं सिर ज्यारै ॥ ६४ अथ गीत सावझ अडियळ लछण
दूहौ सोळह मत्ता वरण दस, पद पद झमक गुरंत । 'किसन' सुजस पढ स्री किसन, अड़ियल गीत अखंत ॥ १००
अरथ जीके अादकी तथा सारी ही तुकां प्रत मात्रा सोळ होय, तुक प्रत आखिर दस दस होय, तुकांत दोय गुरु होय, अंतमें जमक होय सौ अड़ियल गीत कहीजै । तुक प्रत अख्यर दस छै जिता बे वरण छंद छै। कोइक अण गीतनै सावझ अडल पिण कहै छै । च्यार दूहा होय सौ तौ अड़ियल नै एक दूहौ होय सौ चौसर गाहौ तथा गाथा कहावै ।
__ अथ अड़ियल गीत उदाहरण
गीत.
निज संतां तारै घणनांमी, नहच्यौ ज्यां नैडौ घणनांमी ।
निरपखां पखौ घणनांमी, नाथ अनाथांचौ घणनांमी ॥ ६६. भारथ-युद्ध । खळ-असुर । जाड़ा-जबड़ा। भानंखी-तोड़ने वाला । धाड़ा-अातंक,
रौब, धन्य-धन्य। धानखी-धनुषधारी। दसाणण-रावण । लेणी-लेने वाला । भभीखण-विभीषण । सेवग-भक्त । देणौ-देने वाला। तोटौ-कमी, अभाव । त्यारै--
उनके । ज्यारै-जिनके । १००. मत्ता-मात्रा। वरण-अक्षर। झमक-झमकाव । गरंत-जिसके अंतमें गुरु (वर्ण) हो।
प्रखंत-कहते हैं। जीके-जिसके । तुकां-प्रत-प्रति तुक या प्रति चरण । प्रख्यर
अक्षर । कोइक-कोई। प्रण-इस । पिण-भी। १०१. घणनांमी-ईश्वर । नहच्यौ-धैर्य, निश्चितता । ज्यां-जिन । नैडौ-निकट । निरपखा
जिसका कोई पक्ष न हो। पखौ-पक्ष, मदद, सहायता।
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