________________
२२२ ]
रघुवरजसप्रकास रीझ सदांमासं गिरधारी, ध्रवी अाथ बाथां गिरधारी । धारै चक्र भुजां गिरधारी, धायौ गज बाहर गिरधारी ॥ ग्रीध ग्राह तारण गोव्यंदौ, गणका गत देणौ गोब्यंदौ । ग्रहीयां जम भीड़ गोव्यंदौ, गुण गावण जेहौ गोव्यंदौ ॥ सिघां तीन लोकां सांवळियौ, सूर कुळां छोगौ सांबळियौ । साहै चाप राम सांवळियौ, सीतावर सांमी सांवळियौ ॥ १०१
अथ गीत धड़उथल लछण
सोळे मत्ता सरब तुक, अंत एक गुरु होय । उलटै पाछौ अरधहूं, कह धड़ उथल सकोय ॥ १०२
प्ररथ सोळं ही तुकांमें मात्रा सोळं होय । एक तुकांत गुरु होय । प्राधातूं तुकां पाछी उलट तथा पूरबारधसूं उतरारध वणै । लाटानुप्रास अलंकार होय सौ धड़उथल गीत कहीजै। कोइक इणनै कवि ईलोळ पण कहै छ। गीत धड़ उथलमें न्यूंन जथा छै सौ देख लीज्यौ ।
अथ गीत धड़उथल उदाहरण
_गीत जम लगै कठे भै सीस जियां, तन दासरथी नित वास तियां ।
तन दासरथी नह वास तियां, जम लगसी माथै जोर जियां ॥ १०१. रीझ-प्रसन्न होकर । ध्रवी-दान दी। प्राथ (अर्थ)-धन-दौलत । बाथां-दोनों भुजाओंको
अापसमें फैला कर मिलानेसे बनने वाला बीचका स्थान या इस स्थानमें समा सके उतना पदार्थ, बाहपाश । धायौ-दौड़ा। बाहर-रक्षा । गोव्यंदौ-गोबिंद । गणका-गनिका। गत-गति, मोक्ष । देणौ-देने वाला। ग्रहीयां-पकड़ने पर। जम-यमराज । भीड़सहायक। गण-यश । जेहो-जैसा। सिघां-श्रष्ठ। सांवळियौ-श्रीकृष्ण। छोगौ
अवतंश । साहै-धारण करता है । सीतावर-सीतापति । सांमी-स्वामी । १०२. मत्ता-मात्रा। पाछौ-वापिस । पण-भी। १०३. कठ-कहां । भै-भय । सीस-शिर, ऊपर । जियां-जिनको। दासरथी-श्रीरामचंद्र
भगवान । तियां-उनमें । नह-नहीं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.