________________
रघुवरजसप्रकास
{ २२३ समरै न जिके नर सामळियौ, क्रत-अंत जिकां सिर काहुळियौ। क्रत-अंत करै की काहुळियौं, समरंत जिके नर सांमळियौ ॥ गज-तार न वाक जिकां गुणियौ,सुत-भांण दियै दुख त्यां सुणियौ। सुतभांण तिकां दुख नां सुगियो,गज-तार तिकां मुखहं गुणियौ ॥ रसना पतसीत नकं ररियौ, भव डंड जिकां जमरै भरियो । रसना पतसीततणौ ररियौ, भव डंड जिकां जम नां भरियौ ॥१०३
अथ गीत सीहचला लछग
दूही
अंत रगण अठार धुर, दूजी तेरह जांण । . सोळह तेरह तुक सरब, सीह चलौ वाखाण ॥ २०४
प्ररथ
जीके पैली तुक मात्रा उगणीस होय । दूजी तुक मात्रा तेरै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय। चौथी तुक मात्रा तेरै होय । तुकांत रगण होय जी गीतरौ नाम सीहचलौ कहीजै ।
अथ गीत सीहचलौ उदाहरण
गीत सीता सुंदरी अरधंग ससोभत, सेवग मारुत सारखा । बाळ जिसा बळवंड बिहंडण, पांण भुजाडंड पारखा ॥
१०३. समरै-स्मरण करते हैं। जिके-जो । सामळियौ-ईश्वर, श्रीकृष्ण । क्रत अंत-कृतान्त,
यमराज । जिकां-जिनके। काहुटियो-कोप किया। को-क्या । समरंत-स्मरण करते हैं। जिके-जो. वे। गज-तार-गजका उद्धार करने वाला। वाक-वाणी। जिका-जिन्होंने । गुणियौ-वर्णन किया । सुत-भांण-यमराज । त्यां-उनको। तिकांउनको। नां-नहीं। मुखहं-मुखसे । रसना-जिव्हा, जीभ । पतसीत-सीतापति. श्रीरामचंद्र । नक-नहीं। ररियौ-रटा। भव-डंड-संसारका दण्ड या साजा ।
पतसीततणौ-सीतापतिका। १०५. अरवंग-प्रर्द्धागिनी। मारुत-हनुमान । सारखा-समान, सदृश । बाळ-बालिबंदर ।
बळवंड-शक्तिशाली, जबरदस्त । बिहंडण-ध्वंश करने को, या ध्वंश करने वाला। पाण-शक्ति। भुजाडंड-बली, शक्तिशाली।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org