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रघुवरजसप्रकास कोसिक ज्याग अभंग सिहायक, दांणव घायक दूधरी । पाय रजी रघुराय परस्सत, आ त्रीय गौतम उधरी ॥ प्राझौ राख जनकतणौ पण, मौड़ खळां दळ मांनकी । धींग भुजां सत खंड करी धनु, जेण बरी प्रिय जानकी ॥ साल निवार सुरीस कियौ सुख, बीसभुजा हण बंकरौ । बेख दियौ रघुराज भुजां बळ, राज भभीखण लंकरौ ॥ १०५
अथ गीत बध चितविलास लछण
दूहा सझ खट कळ कर वीपसा, विच संबोधन वेस । . तिण पर चवदह मत तुक, मोहर दुगुरु मिळेस ॥ १०६ गाय अरटिया गीतरौ, यण पर दूहौ ओक । प्रथम चरण अध अंत पढ, सुचितविलास विसेक ॥ १०७ अथ गीत ब्रधचितविलास उदाहरण
गीत गह गंजैरे गह गंजै, भिड़ जंग वडा खळ भंजै । ग्रीधां सांमळ दीध पळां गळ, मेंगळ खागति मंजै ॥
१०५. कोसिक-विश्वामित्र । ज्याग-यज्ञ । सिहायक-सहायक । दाणव-राक्षस । घायक
संहार करने वाला, नाश करने वाला। पाय-चरण । रजी- परस्सत-स्पर्श
करते ही। १०५. प्राझौ-अटल। जनकतणौ-जनकका। पण-प्रण। धींग-जबरदस्त । जेण-जिस ।
साल-शल्य, दुख । सुरीस-सुरेश, इन्द्र । बीसभुजा-रावण ! बेख-देख । १०६. सझ-रख । खट (षट)-छ । कळ-मात्रा। वीपप्ता (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसमें
अर्थ या भाव पर जोर देनेके लिये शब्दावृत्ति होती है, दुबारा कहनेकी क्रिया या भाव । तिण-उस । चवदह-चौदह । मत-मात्रा। मोहरा-तुकबन्दी। मिळेस
मिलते हैं। १०७. यण-इस । दूहौ-गीत छंदके चार चरणोंका समूह । १०८. गह-गर्व । गंजै-नाश करते हैं। भिड़-यूद्ध कर । खळ-दुष्ट, राक्षस । भंज-ध्वंश करते
हैं। सांमळ-एक मांसाहरी चीलकी जातिका पक्षी विशेष । पळां-मांसोंका। गळपिंड, निवाला। मेंगळ-हाथी। खागति-तलवारसे । भंजै-ध्वंश करते हैं, मारते हैं।
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