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रघुवरजसप्रकास
[ २१६ नित ‘किसन' किव रट नाम निरभै ,
रसन स्त्री रघुराम । तौ रघुराम रे रघुराम , रजवट धारियां रघुराम ॥ ६६
अथ गीत पालवणी तथा दुमेळ सावझड़ा लछण ग ल अनियम उगणीस धुर, अन तुक सोळह आण । पालवणी चव तुक मिळे, दुमिल दुमेळ वखांण ॥ ६७
प्ररथ पैहली तुक मात्रा उगणीस बाकीरी पनरैई तुका मात्रा सोळं सोळं होय । तुकांत गुरु लघुरौ नेम नहीं। तुक च्याररा मो'रा मिळे सौ पालवणो कहीजै नै दो दौ तुकरा मोहरा मिळे सौ दुमेळ सावझड़ी कहीजै ईके मध्य अंतमेळ कियां-थकां यौ ही त्रंबकड़ी कहीजै।
अथ पालवणी उदाहरण
गीत सिया बाहर समर दसाणण साझा , ववी उछाहर, दीन निवाजा । दीठां थाहर कनक दराजा , रीझ खीज जाहर रघुराजा ॥ साझण जुधां वीसभुज आसुर , दीन निवाजण अनुज सहोदर ।
१६. रसन-जिव्हा। रजवट-क्षत्रियत्व, शोर्य । ६७. ग-गुरु । ल-लघु । उगणीस-उन्नीस । धुर-प्रथम । अन-अन्य । प्राण-ला, लाकर ।
चव-चार । दुमिळ-जहां दो चरण मिलते हों। मोरा-तुकबंदी। मोहरा-तुकबंदी।
ईके-इसके । कियां-थकां-करने पर। यौ-यह। १८. वाहर-रक्षा। समर-युद्ध । दसाणण-रावण । साझा-संहार किया, मारा। व्रवी
दे दी, दान दी। उछाहर-उमंग। निवाजा-प्रसन्न होकर । दीठां-देखने पर । थाहरगढ़, किला। कनक-स्वर्ण, सोना । दराजा-महान, बड़ा । रीझ-प्रसन्नता। खीजकोप। जाहर-जाहिर, प्रसिद्ध । साझण-मारनेको, संहार करनेको। वीसभुजरावण । प्रासुर-प्रसूर, राक्षस। दीन-गरीब । निवाजण-प्रसन्न होकर। अनुजछोटा भाई। सहोदर-भाई।
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