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________________ २१८ ] रघुवरजसप्रकास " रिखेत भंजण सकुळ रांवण नेत - बंध रघुनाथ रे रघुनाथ । रघुनाथ " तौ रिवकुळ आभरण रघुनाथ ॥ तन स्यांम सघण सरूप पत 9 बीज सकाज | प्रोट रक्खण Jain Education International सुपट रिम कोट हा जन मोट मन तौ महराज रे माहव मोट मन बिरदैत रे धारणौ " महराज । हक-बगां लाखां असुर जुधां करणौ चाढणौ कुळ जळ दळद बाढौ ती बिरदां बळ थकां महराज, महराज ॥ हरणौ " जैत । चौजां 9 बिरदैत | बिरदैत " बिरदै ॥ बखी बखत बेली " तवै जगत तमांम | ६६. भंजण-ध्वंश करनेको । नेत-बंध-अपना स्वयंका झंडा रखने वाला । श्राभरण - श्राभूषण । सरूप - स्वरूप । श्रोपत - शोभा देता है । सुपट - सुन्दर । बीज - बिजली । रिममोट मन-उदार चित्त । माहव । हरणौ - मिटाने वाला ध्वंश करने चाढणौ-चढाने वाला | जळ शत्रु । कोट- गढ़ अथवा करोड़ । श्रोट-शरण । माधव, विष्णु, श्रीरामचंद्र । हक-बगां-युद्ध होने पर वाला । करणौ - करने वाला । जैत- विजय, जीती। कांति, दीप्ति | दळद - दारिद्रय, कंगाली। चौजां-उदारता | बाढणौ-काटने वाला | बिरदंत - विरुदधारी, यशस्वी । धारणौ - धारण करने वाला । थकने पर । श्रबखी - कठिन, दुरूह । बेली - सहायक, मित्र । वर्णन करता है । तमांम - सम्पूर्ण । बळ - शक्ति । थकांतबै स्तुति करता है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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