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________________ रघुवरजसप्रकास सही भ्रगुलता उर संपूजिनै सरम | पढ परम पढ परम पढ परम पढ परम || उदर दधौ जिकौ पूरसी जळ असन । वणै छिब घणै पटपीत पहरण बसन || करे चित खांत निस दिवस रट रे 'किसन' | सीकिसन सीकिसन सीकिसन सीकिसन ॥ ६४ पण झड़ मुगटनै रुगनाथ रूपग मध्ये गोख नांम लख्यौ छै । कोईक जंघखोड़ो पण है छै । अथ गीत चितईलोळ लछण हौ किव सोरठिया गीतके, अधिक दोय तुक ऋण । चवद चवद मत दोढसौ, चितईलोळ [ २१७ Jain Education International अरथ सोरठिया गीतरै पहली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा अठारै । तीजी तुक मात्रा सोळं । चौथी तक मात्रा दस होवै । पछे सारा दूहां मात्रा सोळं दस होवै । जी सोरठियाकै सिरै जातां चवदै चवदै मात्राकी दोय तुकां सवाय होवै जीं गीतको नाम दोढोकै छै तथा कोई कवि चितईलोळ कै छै । तुकांत लघु होवै । छ तुकां होवै । चौथी तुकरा तुकांतरी प्राव्रत उलट पढवासूं पांचमी तुक होय । क्यूंक छठी में पण प्राभास चौथी तुककौ होय सौ दोढी । अथ गीत चितई लोळकी उदाहरण गीत दीनां पाळगर धन सुतन दसरथ " सकज सूर समाथ । पहचांण ॥ ६५ ६४. परम - ईश्वर । उदर- पेट । दीधौ दिया। जिको वह । श्रसन-भोजन । छिब-शोभा । पटपीत - पीताम्बर । • बसन-वस्त्र | खांत विचार । सी-श्री । नोट- मूल प्रतिमें लिखा मिला है कि 'पण झड़ मुगटने रुघनाथरूपगमें गोख नांम लिख्यौ छै, कोईक जंगखोड़ी पिण के छै' परन्तु यह लिखावट बिलकुल अशुद्ध है, गोख गीतके लक्षण रघुवरजस प्रकास और रघुनाथरूपकमें समान ही हैं । ६५. किव - कवि । चवद-चौदह । मत मात्रा । श्राव्रत-श्रावृत्ति । क्यूंक कुछ । पण-भी । ६. दीनां - गरीबों । पाळगर - पालनकर्त्ता । धन-धन्य । सुतन- पुत्र । सूर-वीर । समाथ - समर्थं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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