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________________ २६८ ] रघुवरजसप्रकास चवदह चौथी पांचमी, छट्ठी वीस विचार । असम चरण तौपण अवस, वद यम धमळ विचार ॥ १६६ त्रकुटबंधरी आद तुक, पांच देख परमांण । उभै तुका मिळ अंतरी, जुगत धमळ यम जांग ॥ १६७ अरथ धमळ गीतकै मात्रा वरण प्रमांण नहीं जिणसं असम चरण है । पै'लो तुक मात्रा छाईस होय । दूजी तुक मात्र छाईस होय । तीजी तुक मात्रा तीस होय । चौथो तुक मात्रा चौबीस होय । बाकी और हां ईं प्रकार तथा और ही तरै मात्रा होय पण सम मात्राको निरबाह नहीं। आगे बारठजी स्त्री ईसरदासजी ऋत गीत धमळ स्त्री परमेसर में छै सौ परण इण तरै छै जींने देख नै मैं कह्यौ छै तथा श्रौर लछण करने मात्राकौ निरूपण करां तौ परण असम चरण छै । और विध मात्रा प्रमांण करां छ । छ तुक करने सौ कवेसर देख विचार लीज्यो । गीत ररणधमळकै छ तुकां हुवै छै । पै'ली तुक मात्रा चवदै । दूजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा प्रठावीस । चौथी तुक मात्रा चवदै । पांचमी तक मात्रा चवदै | छठी तुक मात्रा चौबीस । अंत लघु तौ पिण रणधमळ असम चरण छंद छै और सुगम लछण कहां छां । गीत त्रकुटबंधरी पांच तुकां तौ प्रादरी नै दोष तुकां दूहारै अंतरी, प्रेक कंठरी नै क दूजी यां दोयांरी क तुक करणी । यां छ ही तुकांनै भेळी कर पढजै, सौही धमळ जांणणो । सोई ग्रंथ में पण त्रकुटबंध कयौ छै सौ देख लीज्यो । इति रणधमळ गीत लछण निरूपण समापत । इण गीतरौ नांम धमळ को छै । अथ गीत धमळ उदाहरण गीत तूंच सांमाथ तूं सुरनाथ रघुनाथ तूं दसमाथ रामण, रिमघात तूं रघुनाथ । भांजवा भाराथ || १६६. तो पण-तो भी । श्रवस - अवश्य । वद कह । यम- इस प्रकार | आद ( प्रादि ) - प्रथम | उभे-दो, दोनों। जुगत-युक्ति । पण- परन्तु । पण भी। निरूपण - विचार, निर्णय | कबेसर - कवीश्वर | Jain Education International १७. श्रठावीस - अठाईस । श्रादरी-प्रादि की। कंठ अनुप्रास । यां-इन । दोयांरी-दोनोंकी । भेळी-साथ | १६८ सांमाथ - समर्थ । सुरनाथ - देवताओंका स्वामी । रिमघात - शत्रु का विध्वंशक था संहारक | दसमाथ-दस शिर भांजवा - नाश करनेको । भाराथ-युद्ध । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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