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________________ रघुवरजसप्रकास [ २६७ अथ गीत अरधगोखौ सावझड़ो उदाहरण गीत बंद पाय राघवेस, जोध मेघनाद जेस । बंध वांमणी विसेस, सेस सेस सेस ॥ पाड़िया जुधां बिपच्छ, रांम पाय सेव रच्छ । ओर मेर रूप अच्छ, लच्छ लच्छ लच्छ ॥ सूर धीर तास संत, मांण पांण तेज मंत । दाहणौं जुधां दयंत, नंत नंत नंत ॥ चीत प्रीत क्रीत चाह, दैत राज सेस दाह । लेण रांम सेव लाह, वाह वाह वाह ॥ १६२ अथ गीत धमळ तथा रिणधमळ, सम तथा असम चरण लछण धुर तुक मत छाईस धर, छै बीजी छाईस । तीस मत तुक तीसरी, चौथी मात्र चौवीस ॥ १६३ अवर दवाळा अवर विध, नहीं मत्त निरबाह । ईसर बारठ अक्खियो, असम चरण यणराह ॥ १६४ अथ धमळ गीत अन्य विध लछण वदिया लछण अवर विध, खट तुक होय विसक्ख । चवद प्रथम दूजी चवद, अठाईस त्रिय अक्ख ॥ १६५ १६२. बंद-नमस्कार कर । पाय-चरण । राघवेस-श्री रामचन्द्र । जोध-योद्धा। मेघनाद इन्द्रजीत । जेस-जैसा। पाड़िया-मारे। बिपच्छ-विपक्षी, शत्र । दाहणौ-मारने वाला, ध्वंश करने वाला। दयंत-दैत्य । सेव-सेवा। लाह-लाभ । वाह-वाह धन्य.धन्य। १६३. धुर-प्रथम । तुक-पद्यका चरण । मत-मात्रा। छाईस-छब्बीस । छै-है। बी दूसरी । मझ-मध्य, में । दवाळा-गीत छंदके चार चरणका समूह । १६४. अवर-अन्य । निरवाह-निर्वाह। अक्खियौ-कहा। यणराह-इसके। १६५. वदिया-कहे । लछण-लक्षण । विसक्ख-विशेष । चवद-चौदह । दूजी-दूसरी । त्रिय तीसरा। अक्ख-कह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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