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रघुवरजसप्रकास अथ गीत उवंग सावझड़ी उदाहरण
गीत
जगनाथ अंतरतणौ जामी, गाहणौ खळ गुरड़ गांमी। साच वायक सिया सांमी, भुजां भांमी भुजां भांमी ॥ थूरण रिण दैतां थोका, लाज रक्खण संत लोका। रांम रिण दसमाथ रोका, करां मौका करां मौका । देण सेवग लंक दाता, घल्ल व्याध कबंध घाता। बिसू रखण क्रीत वातां, हद्द हातां हद्द हातां ॥ मीढ ना अज इस माधौ, थाह दिल नावै अथाघौ। देव दीनां कसट दाधौ, रंग राघौ रंग राघौ ॥ १६०
अथ गोत अरधगोखौ सावझड़ी वरण छंद लछण
दूहौ
रगण जगण गुरु लघु हुवै, जिणरै तीन तुकंत । होय वीपसा चवथ तुक, अरध गोख पाखंत ॥ १६१
जिण गीतरै पैली दूजी तीजी तीनां तुकां तौ पैली गण गण । पछै जगण गण । पछै गुरु लघु । ई क्रमसू आठ अखर तीन तुकां होय । चौथी तुक पैली रगण । पछै जगण छ अखिर होय । ईं क्रमसू च्यार तुकां होय सौ अरधगोख वरण छंद सावझड़ी कहीजै नै जीके ई क्रमसू आठ तुकां होय जिणनै वधगोख कहीजै, सौ वधगोख तौ प्रागै कह्यौ ईज छै सौ देख लीज्यौ ।
१६०. अंतरतणौ-भीतर का, अन्दर का। जांमी-पिता । गाहणौ-नष्ट करने वाला । खळ
राक्षस । वायक-वाक्य, वचन। सिया-सीता। भांगी-बलैया, न्यौछावर । थरण नाश करना, ध्वंश करना । दैतां-दैत्यों। थोका-समूह । दसमाथ-रावण । झोकाधन्य-धन्य । घातां-नाश । विसू-पृथ्वी, संसार । क्रीत-कीति । मीढ-समान, सदृश्य । अज-ब्रह्मा । ईस-शिव । माधौ-माधव । थाह-गहराई, गंभीरता। प्रथाघौ-अपार, असीम । दाधौ-जलाने वाला। रंग-धन्य-धन्य । राघौ-श्री रामचन्द्र ।
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