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रघुवरजसप्रकास
। २६५ अथ गीत दुमेळ उदाहरण
गीत भूपाळां भांमी नेक नांमी, सेव पाय सुरेस । सुज दया सिंधू दीनबंधू, अखै क्रीत अहेस ॥ बटपंच बास सत्रनासे, राज कज सुरराज । खर खेत खंडे थूर थंडे, सूर कुळ सिरताज ॥ भुजवीस भंजे गाव गंजे, स्रोण भुंजे सार । सरणा सधारे बिरदधारे, तोय पाथर तार ॥ निरबळां नेकां कोध केका, साहि हाथ सुनाथ । गुण किसन' गावै प्रसिध पावै, अमर ईजत अाथ ॥ १८८ अथ गीत उवंग सावझड़ी लछण
दूही सगण सोळ मत प्रथम तुक, दो गुर अंत दिपंत । आंन चवद अख, उभै वीपसा अंत ॥ १८६
प्ररथ पैली तुकरै पाद तौ सगण नै सोळं मात्रा होय । और साराई गीतरी पनरै ही तुकां मात्रा चवदै होय । तुकांत दोय गुरु अखिर होय जिण सावझड़ा गीतनै उमंग कहीजै तथा कोई कवि उवंग पण कहै छै। चौथी तुक में दोय वीपसा आवै छै।
१८८. भांमी-न्यौछावर, बलैया । सेव-सेवा करता है । पाय-चरण । सुरेस-इन्द्र । सिंधू
समुद्र । अखे-कहता है, वर्णन करता है। अहेस-शेषनाग। बटपंच-पंचवटी। सत्रशत्र । नास-नाश किये । कज-लिये। सुरराज-इन्द्र। भुजवीस-रावरण । भंजेनाश किया। गाव-गर्व । गंजे-मिटाया, नाश किया। स्रोण (शोणित)-खुन, रक्त । भंजे-भक्षण किया। सार-तलवार । सरणा-शरणागत । सधारे-रक्षा की । तोयपानी । पाथर-पत्थर । कीध-किया किये। केकां-कई। गण-यश, कीर्ति । प्रसिधकीर्ति, प्रसिद्धि । प्राथ-धन, दौलत ।
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