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. रघुवरजसप्रकास गरब सत्रां गंजणा, रमा सुचित रंजणा । भुजां सजोर भंजणा, चढाय सिंभ चाप ॥ गळे दुजेस गावरा, सधीर जे सभावरा । अभंग हेम अद्रसा, अडोळ नंग आप ॥ अनेक संत आसरे, वसे सहीव वासरे । प्रथीप रांम पोखणा, अमी सुदीठ अंग ॥ सधीर भ्रात सेससा, मनां रटै महेससा । खळां अनेक खेसणा, जपां अपीठ जंग ॥ दितेस सेन दाहणा, रघूस क्रीत राहणा । करी ऊधार कारणा, हरी विलंद हाथ ॥ नमे सुरेससा नगां, सधार दीन सेवगां । 'किसन' पातसूं कहै, नमौ अनाथ नाथ ॥ १८६
अथ गीत दुमेळ लछण
दहौ तुक धुर तीजी सोळ मत, दोय मेळ दाखंत । दूजी चौथी मत दस, अख दुमेळ लघु अंत ।। १८७
प्ररथ धुर कहतां पै'ली तुक मात्रा सोळ होय । पै'ली दूजी तुकमें दोय मेळ प्रावै जींसू गीतरौ नाम दुमेळ कहावै। दूजी तुक मात्रा दस होय । चौथी तुक मात्रा दस होय । दूजी चौथी तुकरै तुकांत लघु होय। जिण गीतको नाम दुमेळ कहावै । १८६. गरब-गर्व, अभिमान । गंजणा-मिटाने वाला । रमा-लक्ष्मी । रंजणा-प्रसन्न
करने वाला। सजोर-शक्तिशाली। भंजरणा-नाश करने वाला। सिंभ-शंभु, शिव । दुजेस-द्विजेश, महर्षि, परशूराम । सभावरा-स्वभावका । अभंग-ढ, अटल । हेम अद्रसा-हिमालय पर्वतके समान । नंग-पैर, चरण । प्रथीप-राजा । पोखरणापोषण करने वाला। अमी-अमृत । सुदीठ-सुदृष्टि । खेसरणा-नाश करने वाला। अपीठ जंग-वह जो युद्ध में अपनी पीठ शत्रको न दिखाता हो। दितेस-असुरेश, रावणादि । दाहरणा-ध्वंश करने वाला । रघूस-रघुवंश । क्रीत-कीर्ति । राहणा-रखने वाला। नगां-पैरों। सधार-रक्षक ।
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