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________________ रघुवरजसप्रकास । २६३ पहली दूजीसूं मिळ, तीजी छठी समेळ । मिळ चवथी पंचमी, भल तुकंत लघु भेळ ॥ १८३ आठ वरण धुर दूसरी, तीजी पनर तुकंत । पुण ठ चौथी पंचमी, छठी पनर छजंत ॥ १८४ विध इण मत्ता वरणरौ, परगट जांण प्रमांण । भांग - गीत जिण नांम भल, भणजस रघुकुळ भांग ॥ १८५ अरथ पै' ली तुक मात्रा बारे । दूजी तुक मात्रा बारे । तीजी तुक मात्रा बावीस | चौथी तुक मात्रा बारै। पांचमी तक मात्रा बारे । छठी तुक मात्रा बावीस होय । तुकांत लघु हो । पै'ली दूजी तुक मिळं । तीजी छठी तुक मिळं । चौथी पांचमी तुक मिळे अथवा च्यार तुक कीजै तौ पैली तुक मात्रा चौबीस । तुक दूजी मात्रा बावीस । तुक तीजी मात्रा चौबीस । तुक चौथी मात्रा बावीस । यूं तौ भांण गीत मात्रा छंद होय । प्रखर गिणती कीजै तौ तुक पैली दूजीरा श्राखर आठ होय । तीजी छठीरा प्राखर पनरै पनरै होय । चौथी पांचमीरा श्राखर आठ होय तथा च्यार तुकां कीजै तौ पैली तीजी तुकरा ग्राखर सोळं होय । दूजी चौथी तुकरा प्रखर पनरै पनरै होय ! तुकांत लघु । ईं तरै भांण गीत वरण छंद होय | अथ भांग गीत उदाहरण गीत नरेस रांम नं मळां, उरां सभाव ऊजळा । अस भंज दवां, करेस देव काज ॥ सपांणचाप सायकं, घड़ा रेस घायकं । चवंत सिद्ध चारणं, प्रसिद्ध सिंघ पाज ॥ १८३. चवथ्यो - चतुर्थ, चौथी । भल-ठीक । १८४. पुरण - कह । श्रठ-ग्राठ। पनर-पनरह । छजंत-शोभा देता है । १८५. विध प्रकार, तरह। मत्ता - मात्रिक भरण- कह । बार - बारह । यूं- ऐसे । श्रखरअक्षर । इं- इस । तरै-तरह । १८६. नू मळां-निर्मल । उरां-उर, हृदय । ऊजळा-उज्ज्वल । श्ररेस - शत्रु । सपणचापहाथमें धनुष सहित । सायकं तीर । घड़ा-सेना | घायक- संहार करने वाला । चवंतकहते हैं। सिंध - समुद्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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