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रघुवरजसप्रकास
सदा
नमंत औधराय पाय धू सुरेस रे । वदां नरेस न कूरण जोड़ राघवेस रे || निबाह सीतनाथ वाह संतचा अमोघ बाण चाप पण वांग जे जुधां निपात सांमराथ लंकनाथ जेहड़ा । कहां नरिंद दासरथनंद जोट केहड़ा | अपार तेज अंगधार धार तेज आकती ।
पै अमाप पाप ताप नांम जाप कांमती ॥ जुधां जयंत सेवमें रहै अनंत साजती । भणा किसौ समांन ांन कौसळ स भूपती ॥ महामदंध सुरां सुरंद चाड मारणा । त्रिलोकनाथ गोह ग्राह ग्रीध बाद तारणा ॥ 'किसन्न' पात व्है दयाळ पाळ सिध कारणा | धनौ नरेस राघवेस चीत नीत धारणा ॥ १८१
अथ भांण गीत मात्रा वरण प्रमाण लछण दूहा
धुर बीजी मत बार धर, वद तीजी बावीस | बारह चौथी पंचमी, वळ छठी बावीस ॥ १८२
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१८१. श्रीधराय - श्री रामचन्द्र भगवान । पाय - चरण । धू - शिर, ध्रुव । सुरेस - इन्द्र । वदां -कहे । नरेस-राजा । श्रांत-प्रन्य । कूरण-कौन । जोड़-बराबर, समान । राघवेसश्री रामचन्द्र भगवान । नेहड़ा - स्नेह । श्रमोघ- नहीं चूकने वाला अव्यर्थ, अचूक | निपात- गिराना । सांमराथ- समर्थ । लंकनाथ-रावरण । जेहड़ा - जैसा । नरिदराजा । दासरथ्थ - राजा दशरथ । नंद-पुत्र । जोट जोड़ी । केहड़ा - कैसा । कपकाटते हैं । श्रमाप- अपार । ताप - श्रातंक, भय । जयंत- जीतना । सेवमें सेवामें । अनंत - लक्ष्मण । जती - जितेन्द्रिय, यती । किसौ-कौनसा । श्रनि श्रन्य । श्रासुरां - राक्षसों । सुरंद-इन्द्र । चाड - पुकार मारणा-मारने वाला । गोह-गुह नामक निषाधराज । श्राद-आदि । ताररणा - तारने वाला । पात - कवि । पाळ-रक्षा | सिंधसिंधुर, गज । कारण- कारण, करने वाला धनौ- धन्य । चीत-चित्त । नीत-नीति । धाररणा - धारण करने वाला ।
१८२. धुर - प्रथम । बीजी- दूसरी । मत - मात्रा । बार-बारह । वद कह | वळ - फिर ।
नेहड़ा । छेहड़ा |
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