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रघुवरजसप्रकास
अबीह तूं नरसीह
ईस वा अघात हाथां व्रवण रंकां प्राथ ॥ लंकाळ सेवग तू लांगौ, भ्रात लिछमण खळां- भांगौ । पती - कुळ स्वारथो पांगौ, करण सह निकंद ॥ जांनकी नायक जंगमें, रोसेल बीरत रंगमें । बिरदैत जस रथ धमळ बँका, निमौ दसरथनंद ॥ जुध दुसह दस सिर जारणा, मह कुंभसा खळ मारणा । धनुबां धारण पांण धजबंध, जबर जोम जिहाज ॥ जटाजूट सिर बन पट झल, अंग घट रजवट ऊफळे 1 अणभंग जैतां जंग सुर, रंग कोसळराज || रख पय भभीखण रंकरा, लहरे क आपण लंकरा | काकुसथ खळदळ भसम कर, साधार - सरण सभेव ॥ निज बिरद नाथ अनाथरा, सुज धरण भुजां समायरा । कित्र 'किसन' बेग सुनाथ कीजै, दीनबंधव देव ॥१६८
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पै, लौह संतां नकूं लोपै ।
अथ गीत त्रिभंगी लछण दूहौ
धुर ठार बी बार घर, ती सोळह चव बार ।
बि गुरु अंत सौ पूर्णियौ, सोय त्रिभंगी सार ॥ १६६
१६८. अणबीह-निर्भय, निडर । लीह-रेखा, मर्यादा । नकूं- नहीं । लोपै - उलंघन करता
हूँ । व्रवण देने को देने वाला । रंकां-गरीबों । श्राथ-धन । लंकाळ -वीर, श्री रामचन्द्र भगवान | तुझ-तेरा। लांगौ-हनुमान । लिछमण - लक्ष्मण | खळां भांगौराक्षसों का नाश करने वाला । पांगौ- पंगु । असह - शत्रु । निकंद-नाश । रोसेल - जोशीला । बीरत-वीरत्व । बिरदैत- विरुद्ध धाररणकरने वाला । पण (पाणि) - हाथ । धजबंध -अपनी ध्वजा या झंडा रखने वाला वीर । जबर - जबरदस्त । जोमजोश। जिहाज - जहाज । जटजूट- जटाजूट | अघट - अपार । रजवट - क्षत्रियत्व | ऊ - उमड़ता है | आपण देने वाला । साधार-सरण - शरण में श्राए हुएकी रक्षा करने वाला । किव-कवि । बेग-शीघ्र ।
१६६. बी- दूसरी । बार-बारह । तो-तीन, तीसरी । चव-चार, चौथी । बि-दूसरी । सोयवह, वही ।
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