________________
१३८ ]
रघुवरजसप्रकास
छंद तोटक (स स.म.स.) रघुराज सिहायक संत रहै । कथ भेद जिको अज वेद कहै ॥ दसमाथ बिभंज भराथ दखं । पहनाथ समाथ अनाथ पखं ॥ पत-सीत प्रवीत सनीत पढं । दळ जीत लखां रिण जीत दढं ॥ रसना किसना' जिण क्रीत रटौ । दुख प्राचत ओघ अमोघ दटौ ॥ ६७
छंद सारंग (त.त.त त.) · राजेस स्रीरांम जे नैण राजीव । पातां अभै दांनकी जांनकी पीव ॥ औधेस आछेहके संत आधार । सारंग-पांणी 'किसन्नेस' साधार ॥ ६८
छंद मोतीदांम (ज.ज.ज.ज.) दिपै रघुनायक दीनदयाळ, पुणां खळ घायक सेवग-पाळ । चढे दसमाथ विभंजण वंक, लछीवर देण भभीखण लंक ॥६६
६७. सिहायक-सहायक । जिकौ-जिस, वह । अज-ब्रह्मा। दसमाथ-रावण । बिभंज
नाश कर। भराथ (भारत)-युद्ध । पहनाथ (प्रभुनाथ)-ईश्वर । समाथ-समर्थ । पखंपक्ष, मदद । पत-सीत (सीतापति)-श्रीरामचंद्र । प्रवीत-पवित्र । दळ-सेना। रिणयुद्ध । रसना-जीभ । जिण-जिसकी। क्रीत-कीर्ति, यश । प्राचत-पाप, दुष्कर्म ।
प्रोघ-समूह । अमोघ-निष्फल न होने वाला, अव्यर्थ । दटौ-नाश करो। १८. राजेस (राजेस)-सम्राट । जे-जिसके । राजीव-कमल । पातां-कवियों। पीव-पति।
प्रौधेस-अयोध्या-नरेश, श्रीरामचंद्र । पाछेह-अपार । सारंग-पांणी (सारंग-पारिण)
सारंग नामक धनषको धारण करने वाला, विष्णु, श्रीरामचंद्र । साधार-रक्षक । १६. दिपै-शोभायमान होते हैं। पूणां-कहता हूँ। खळ-असुर, राक्षस । घायक-विध्वंशक,
नाश करने वाला । सेवग-पाळ-सेवक या भक्तकी रक्षा करने वाला। दसमाथ-रावरण। विभंजण-नाश करनेको, मिटानेको। वंक-बक्रता, गर्व । लछीवर-लक्ष्मीपति, श्रीरामचंद्र । देण-देनेको। भभीखण-विभीषण । लंक-लंका ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org