SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ ] 'किसन' रखण रघुवरजसप्रकास सुकव सिर धर चरण सरण दूहौ विध यण गाथा वरणिया, सुजस रांम कथ सार | विध कोई चूकौ वरतां, सत किव पढ़ौ सुधार ॥ १७५ अथ गाहा १ गाहू २ विगाहा ३ उगाहा ४ गाहेणी ५ सीहणो ६ खंधांणा ७ । विचार लछण वरणण । गाहा विगाहा लछण कर " रघुनायक ॥। १७४ छंद बेयरी गाहा ? मात्र सतावन गावै, गाहौर उलट विगाह गणा I चौपन मत गाहू३ उचरीजै, उगाहौ४ मत्त साठ अखीजै ॥ १७६ गाणी ५ बासठ मत गावत, कियां उलट सीहणी६ कहावत । चौसठ मत खंधारण ७ चवीजै, कळ विभाग यांपद-प्रत कीजै ॥ १७७ गाथारै पद-प्रत मात्रा वरणण याद बार मत दुवै अठारह बार त्रतीय चव पनर विचारह | विगाह पद-प्रत मात्रा पद धुर बार दुवै पनरह पुण, तीयै बार अठार चवथ ति ॥ १७८ गाहू पद-प्रत मात्रा प्रथम बार मत्त पनर दुवै पद, वळ तिय बार पनर चौथै वद । Jain Education International उगाहा पद-प्रत मात्रा प्रमाण पहला बार अठार दुवै पढ़, तीजै बार अट्ठार चवथ द्रढ़ || १७६ चवथ-चतुर्थ | १७६. वळ - फिर । तिय-तृतीय । १७५. विध-विधि । यण- इस । किव - कवि । १७६ मात्र मात्रा | उचरीजै - कहिए। श्रखोज - कहिए । १७७. मत मात्रा । कहावत - कहा जाता है । चवीज कहिए । पदप्रत- प्रति पद, प्रति चरण । १७८. पद-चरण । धुर - प्रथम | बार- बारह । दुवै - दूसरे । पुण- कह । तीयं - तृतीय | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy