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________________ रघुवरजसप्रकास 1 ८१ गाथा नाम सारसी अख्यर ५२ गुरु ५ लघु ४७ जन लज रखण जरूरह , दसरथ सुत सकळ सुजन सुखदायक । सिरदस घायक समहर , सत वायक राम सरसत सुभ ॥१७१ गाथा नाम कुररी अख्यर ५३ गुरु ४ लघु ४६ भुज-बळ खळ-दळ भंजण , निज जन सुख करण सरण राखण नित। कहत वरण कथ जग कर , आपण दत लंक चित अपहड़ ॥ १७२ गाथा नाम सिंधी अख्यर ५४ गुरु ३ लघु ५१ असन वसन जळ अहनिस , मत कर मन फिकर समर महमाहण । पोखण भरण दिवस प्रत , निज जन फिकर चित्त रघुनायक ॥ १७३ गाथा नाम हंसी अख्यर ५५ गुरु २ लघु ५३ जगत जनक हरि जय जय , भय जांमण मरण हरण कर निरभय । १७१. जरूरह-अवश्य। सिरदस-रावण। घायक-संहारक, नासक । समहर-युद्ध । वायक-वाक्य, शब्द । १७२. आपण-देने वाला। दत-दान । लंक-लंका। अपहड़-उदार । १७३. असन-भोजन । वसन-वस्त्र । अहनिस-रात दिन। महमाहण-विष्णु, ईश्वर । दिवस-दिन । प्रत-प्रति । १७४. जांमण-जन्म । हरण-मिटाने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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