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________________ रघुवरजसप्रकास गाणी पद-प्रत मात्रा याद बार अट्ठार दुतीय ख, सुजतिय बार बीस चोथै सख । सींहणी पद-प्रत मात्रा बाद आाद दूसरे वीस बळ, कह तिय बार अठार चवथ कळ ॥१८० [ ८३ खंधांना पद-प्रत मात्रा मात्र बतीस यार तुक मांही, दोय गुरु पद अंत दियांही । निज किव किसन कियां यम निरौ, बड कवि सीय रांम जस वर ॥ १८१ अथ गाथा अथवा गाहा उदाहरण महकुळ धिन पित मातं, सौ घर न धन्य सुरग पित्रेसुर । सौ धन भवन सकाजं, बासै जै दास रघुबरकौ ॥१८२ अथ विगाही उदाहरण कौसळया, उदरे जिण रांम औतारं 1 करणी धन भण दसरथ बडभागं, जिरा घर सुत रामचंद्र जग जेता ॥ १८३ अथ गाहू उदाहरण सुखदाता सरणायां, निज संतां जानुकी नायक । दस सिर भंज दुबाहं, राहं जग कीत राजेस्वर ॥ १८४ अथ उगाही तं जौ चाहै तरबौ, जप मत मन आंन चाळ जंजाळ | नित जप राघव नांमं, तिण पाथर नाव उदध कपि तारे ॥ १८५ १८०. प्राद- प्रादि, प्रथम । दुतीय- द्वितीय । श्रख कह । सुज - फिर । तिय-तृतीय। कळ मात्रा । १८१. मात्र मात्रा | मांही- में, अंदर । १८२. धिन धन्य । पित पिता । मातं १८४. सरणायां- शरण में आया हुआ । १८५. तरबौ - तैरना, उद्धार करना । पत्थर | उदध - उदधि, सागर । कपि-बंदर | Jain Education International यम- इस प्रकार । माता । सुरग स्वर्ग । धन-धन्य । दुबाहं वीर । श्रांन अन्य । श्राळ जंजाळं व्यर्थका प्रपंच | पाथर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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