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________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३७ कौसिकदे जिग परबरसी कित्ता, पै रज करी सिला परवित्ता । भंजे चाप अमाप अभित्ता, सीता ब्याह सुमांदा ॥ ते तेज हरा दुजरांम अताई, पितदे हुकम रिखी व्रत पाई। मारे ब्याध कबंध अमाई, वाटीपंच वमांनंदा ॥ रांमण तद हरी जानुकी रांणी, भोली बेर भखांनंदा । मिळ कपि हणुमंत सुकंठी म्यता, चौपट मारे बाळ अचंता। दांन भभौखण लंक दीयंता, बध पाज जळवांनंदा ॥ .....................। बंबी जद घोर जंगदा बग्गा, लड़ण मेघनाद रिण लग्गा। भिड़ तिण सेस भुजू बळ भग्गा, मिटा सोच मघबांनंदा । जोधा रिण कुंभ दसानन जुट्ट, कोपे रांम बिहूं सिर कट्टे । आंण सिया दुख देव अहुट्ट, जपै क्रीत जिहांगंदा ॥ २६ अथ मछटथळ तथा सोहणी नाम निसांणी लछण दही तेर प्रथम सोळह दुती, मझ तुक बे बिसरांम । गुणति मत अंते बे गुरु, निमंध मछटथळ नाम ॥ ३० प्ररथ मछटथळ नाम निसांणीरै तुक प्रत मात्रा गुणतीस होय । तुकरै अंत दोय गुरु अखिर होय । तुक अंक प्रत मात्रा गुणतीस होय, जीरा दोय विसरांम होय । २६. कौसिकदे-विश्वामित्र । जिग-यज्ञ । परबरसी (परवरिश)--रक्षा, पालन-पोषण । चाप-धनुष । अभिता-निर्भय,निशंक । दुजरांम-परशुराम । पितदे-पिताका | वाटीपंचपंचवटी । भोली-भिल्लनी । भखांदा-खाये, भक्षण किये । सुकंठी-सुग्रीव । म्यंता-मित्र । चौपट-खुला मैदान । बाळ-बालि वानर । पाज-पुल । जळबांदासमुद्रकी। बंबी-नगाड़ा। जद-जब । जंगदा-युद्धका । बग्गा-बजा। भिड़-योद्धा । सेस-लक्ष्मण । मघबानूंदा-इन्द्रका। जु-भिड़े। बिहूं-दोनों। कट्ट-काट डाले । अट्ट-नाश हुए। जंपै-वर्णन करता है। जिहांनूंदा-संसारके । ३०. तेर-तेरह। दुती-दूसरी। बे-दो। गुणति-उनतीस । मत-मात्रा। निमंध-रच, बना । गुणतीस-उनतीस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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