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________________ ३३६ ] रघुवरजसप्रका अथ पैड़ी निसांणी लछण दूहौ ठार सोळ सोलह चवद, तुक प्रत मत चवसाठ | नीसांणी मगणंत निज, पैड़ी या विध पाठ ॥ २८ अरथ पैड़ी निसांणी तुक प्रेक प्रत मात्रा चौसठ होय । तुकांत गुरु होय तथा मग होय । तुक कमें विसरांम च्यार होय । पै'लौ विसरांम मात्रा अठार पर होय । दूजौ विसरांम मात्रा सोळं पर होय । तीजौ विसरांम मात्रा सोळ पर होय । चौथौ विसरांम मात्रा चवदं पर होय । ईं प्रकार च्यार विसरांम होय । तुक क प्रत मात्रा चौसठ होय, सौ पैड़ी नांम निसांणी कहीजै । Jain Education International ग्रंथ पैड़ी निसांणी उदाहरण निसांखी भारा कांत हुबंदी भूम्मी, वरतंदी सुरवार विक्खम्मी | अमरं कथ भ्रहमांण अखंम्मी, थंदे उध्थल थांनूंदा ॥ आदम अरु भदेव मिळियंदे, आए सब दरियाखीरंदे | काहल दस्तबंध कुत्ररंदे, गिरीश्ररि गुजरांनंदा ॥ अरज सुण कर दरियाफत अल्ला, बरदे महरबान के बुल्ला । हूं दे तुम कज जंगूं हमल्ला, यळ अवतार असांनंदा || संभूमन नूप दसरथ्य समथ्थी, कोसळ्या सत रूपा कथ्थी । जाहर पूत च्यार जग जी, जांमण सेर जवांनूदा || २८. ठार - अठारह | सोळ - सोलह । चवद-चौदह । विसरांम - विश्राम । चवसाठ-चौसठ । यण - इस । । उथल - उलटा । २६. भारा - भार, वजन । प्राक्रांत - घिरा हुआ, आवृत । हुवंदो होती । भूम्मी (भूमि) - पृथ्वी । वरतंदी - हो रही हो । सुरवार - देवताओं का समय । विखम्मी - विषम | श्रमरूं-देवता । कथ कथा । भ्रमण - ब्रह्मा । अखंम्मी - कही थांदा-स्थान । श्रादम - ईश्वर, शिव । बंभदेव-ब्रह्मा । मिळियंदे खीरंदे - क्षीर सागर पर । काहल व्याकुल । दस्तबंध -कर-बद्ध । गिरीश्ररि (गिरिरि ) - इन्द्र | श्रल्ला - ईश्वर । हूं दे- मैं । कज लिये । यळ - भूमि । प्रसांनंदा - मेरा, हमारा । संभूमन - स्वायंभू मनु । मिले । दरिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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