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________________ २६० ] रघुवरजसप्रकास फसण अरस कर आडौ फिरियौ, हुवौ फरसधर तेजविहण । जग मझ राम न को तौ जेहो, केही भूपत मीढ करां ॥२४१ अथ गीत भंवरगुंजार लछरण दूहा सोळ प्रथम चवदह दुती, ज्यांरै लघू तुकंत । ती चवदह नव चतुरथी, अख बी गुरु जिण अंत ॥ २४२ यण हीज विध उत्तर अरध, चतुर सुकवि विचार । भण जस रस रघुवर भंवर, गीत भंवर गुंजार ॥ २४३ प्ररथ भंवरगुंजार गीतरै तुक अाठ मात्रा प्रमाण कहां छां । तुक पैली मात्रा सोळे । तुक बीजी मात्रा चवदै । तुक तीजी मात्रा चवदै । तुक चौथी मात्रा नव । तुक पांचमी मात्रा सोळ । तुक छठी मात्रा सोळे । तुक सातमी मात्रा चवदै । तुक अाठमी मात्रा नव होय । पै'ली बीजी तुकरा मोहरा मिळे । तुकंत लघु होय । तीजी चौथीसू भेळी पढी जाय । पाठमी तुकरा मोहरा मिळनै तुकांत दोय गुरु होय । पांचमी छठी तुकरा मोहरा मिळनै तुकांत लघु होय । सातमी आठमी तुक भेळी पढ़ी जाय । यण प्रकार च्यार ही दूहां प्रत मात्रा होय, जिण गीतरौ नाम भंवरगुंजार कहीजै। अथ गीत भंवरगुंजार उदाहरण गीत . रे अधम नर समर रघुबर , सिया नायक दया सागर । कड़े दध जिण सुजस कहजै भिडै खळ भजे ॥ जपै सिव रिव सेस जाहर , वेख की प्रहलाद बाहर । रूप नाहर धार राघौ गाव रिम गंजे ॥ २४१. फसण-लड़नेको । अरस-कोप । फरसधर-परशूराम। तेजविहीण-कांतिहीन । मझ मध्य । को-कोई, कौन । तौ-तेरे । जेहो-जैसा । केहौ-कौनसा । मीढ-समान, तुल्य । २४२ दुती-दूसरी। त्यांर-उनके। ती-तीसरी । चतुरथी-चौथी। अख-कह । बी-दो। २४३. यण-इस । २४४. कड़े-तट पर । दध-समुद्र । खळ-असुर । रिव (रवि)-सूर्य । वेख-देख । व रक्षा। नाहर-नृसिंहावतार । राधौ-श्रीरामचन्द्र । रिम-शत्रु | गंजे-नाश किये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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