________________
अरथ
जीके आद तुक मात्रा अठारै होय | तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा पैली सोळं मात्रा | पछै तेरै मात्रा, फेरे सोळ, तुकांत दोय लघु होवै जीं गीतको नांम छोटो सांणौर हंसमग कहीजै । ग्रंथ गीत खुड़द सांणौर हंसमग उदाहरण गीत खुड़द छोटो सांणौर
स्त्रीधर स्त्रीरंग सियावर स्रीपत, करणाकर कारण-करण | व्रज नायक विसवेस विसंभर, घणनांमी आणंदघण ॥ नरहर नागनाथ नारायण, गोब्यंद गौप्रिय गोपवर । धराधीस धानंख गिरधारी, कमळाकंत सकमळकर ॥ विमळानन विबुधेस विहारी, संख चक्र धारी सुमण । भव तारण भूधर भय भंजण, हिरणगरभ त्रय ताप हण ॥ नायक रमा नयण कज नरवर, सुखदायक निज जन सयण । भगत-विळ्ळ मन महणसुभायक, निमौ सुधा स्रायक नया ॥ ७८ इति सात सांगौर गीत संपूरण
दूजी तुक मात्रा तेरै होय । तेरै होय । पछळां हां फेर तेरै ईं क्रमसूं होवे ।
७७. जीके - जिसके । श्राद- श्रादि प्रथम शुरूका | पछळां- पश्चातके । पछे - बादमें | ईइस । जीं जिस । ७८. स्त्रीधर - विष्णु, श्रीरामचंद्र भगवान । स्रीरंग - विष्णु ।
सियावर - सीतापति । स्रीपत कारण-करण - कारण और करने श्राणंदघण - श्रानन्दघन | नरहर -
( श्रीपति) - विष्णु । करणाकर- करुणा करने वाला । वाला । विसवेस - विश्वेश । विसंभर- विश्वंभर | नृसिंहावतार | नागनाथ - नागको नाथने वाला, श्रीष्कृरण । गोव्यंद - गोविंद । गौप्रियगोवल्लभ । गोपवर - गोपीपति । धराधीस धराका स्वामी । धानंख-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र | कमळात - कमलापति, विष्णु । सकमळकर - वह जिसके हाथमें कमूलपुष्प हो, विष्णु । विमळानन - विमल मुख । विबुधेस-देवताओंके स्वामी, विष्णु, इन्द्र । सुमण - श्रेष्ठ मरिण यहां कौस्तुभमरिण से अर्थ है । भव-संसार । भूधर - ईश्वर । भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला । हिरणगरभ- हिरण्यगर्भ, वह प्रकाश रूप या ज्योतिर्मय पिंड जिससे ब्रह्मा और समस्त श्रृष्टि प्रकट हुई है । त्रय - तीन । ताप-संकट, कष्ट । हण - पिटाने वाला, नाश करने वाला | नायक - पति । रमा - लक्ष्मी । नयण - नेत्र | कज- कमल । सुखदायक - सुख देने वाला । जन-भक्त । सयण-सज्जन । भगत विछळभक्तवत्सल । महण ( महार्णव ) - सागर । सुभायक - सुरुचिकर, सुन्दर । सुधा - अमृत । सायक- टपकने या टपकाने वाला, श्रवने वाला |
I
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org