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________________ २०६ ] रघुवरजसप्रकास अथ अन्य प्रकार गीत जात वरणण वारता विधांनीक गीत वडौ सांणौर होवै। विधांन कहौ भावै सर कहौ सौ छ सर सत सर तौ लघु सांणौर होवै नहीं । वडौ सांणौर होवै सो ई ग्रंथमें प्रथम सतसर तथा सप्त विधांनीक गीत कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । इति विधांनीक विधि संपूरण । अथ पाङगत, पाङगती वरणण छंद लछण दूहा धुर तुक अखिर अठार धर, चवद सोळ चवदेस । सोळ चवद अन अंत लघु, सौ सुपंखरौं सुदेस ।। ७६ गुणी सुपंखरा गीतमें, वरणण नृत्य वखांण । कहियौ धुर पिंगळ सुकव, जिकौ पाड़ गति जाण ॥ ८० अथ पाङगती सुपंखरा उदाहरण गीत दड़ी पड़तां द्रहामें चढे झांकियौ कदंब डाळ , नीर थाघे अथाघ चडतां वाद नार । खेल्ह बाळवदरै करंतां लगाड़ियौ खेटौ , काळी नाग जगाड़ियौ नंदरै कंवार ॥ ७८. भाव-चाहे। ई-इस । ७६. पाड़मत, पाड़गती-सुपंखरा, त्रिवड़ आदि गीतोंकी संज्ञा विशेष। धुर-प्रथम । तुक पद्य का चरण । अखिर-अक्षर। अठार-अठारह । चवद-चौदह । सोळ-सोलह । चवदेस-चौदह । अन-अन्य। सौ-वह। सुपखरी-गीत छंदका नाम, कहीं-कहीं सुपखरौ भी लिखा मिलता है। ८०. गुणी-कवि, पंडित । ८१. दड़ी-गेंद । द्रहामें- नदीमें, अधिक जल या गहराईके स्थानमें । झांकियो-छलांग भरी, कदा, उछल कर ऊपरके पदार्थको पकड़ा। डाळ-टहनी। थाघे-थाह लिया। प्रथाघ-- अथाह, अपार । खेल्ह-खेल। बाळ ब्रदरै-बाल-समूहके। खेटौ- छलांग । कंदारकुमार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainel www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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