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रघुवरजसप्रकास अथ अन्य प्रकार गीत जात वरणण
वारता विधांनीक गीत वडौ सांणौर होवै। विधांन कहौ भावै सर कहौ सौ छ सर सत सर तौ लघु सांणौर होवै नहीं । वडौ सांणौर होवै सो ई ग्रंथमें प्रथम सतसर तथा सप्त विधांनीक गीत कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ ।
इति विधांनीक विधि संपूरण । अथ पाङगत, पाङगती वरणण छंद लछण
दूहा
धुर तुक अखिर अठार धर, चवद सोळ चवदेस । सोळ चवद अन अंत लघु, सौ सुपंखरौं सुदेस ।। ७६ गुणी सुपंखरा गीतमें, वरणण नृत्य वखांण । कहियौ धुर पिंगळ सुकव, जिकौ पाड़ गति जाण ॥ ८० अथ पाङगती सुपंखरा उदाहरण
गीत दड़ी पड़तां द्रहामें चढे झांकियौ कदंब डाळ , नीर थाघे अथाघ चडतां वाद नार । खेल्ह बाळवदरै करंतां लगाड़ियौ खेटौ , काळी नाग जगाड़ियौ नंदरै कंवार ॥
७८. भाव-चाहे। ई-इस । ७६. पाड़मत, पाड़गती-सुपंखरा, त्रिवड़ आदि गीतोंकी संज्ञा विशेष। धुर-प्रथम । तुक
पद्य का चरण । अखिर-अक्षर। अठार-अठारह । चवद-चौदह । सोळ-सोलह । चवदेस-चौदह । अन-अन्य। सौ-वह। सुपखरी-गीत छंदका नाम, कहीं-कहीं
सुपखरौ भी लिखा मिलता है। ८०. गुणी-कवि, पंडित । ८१. दड़ी-गेंद । द्रहामें- नदीमें, अधिक जल या गहराईके स्थानमें । झांकियो-छलांग भरी,
कदा, उछल कर ऊपरके पदार्थको पकड़ा। डाळ-टहनी। थाघे-थाह लिया। प्रथाघ-- अथाह, अपार । खेल्ह-खेल। बाळ ब्रदरै-बाल-समूहके। खेटौ- छलांग । कंदारकुमार।
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