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रघुवरजसप्रकास
[ २०७ फैल क्रोध चसमां कराळां आग-झाळा फुणां , ताळा दै भुजाळा त्यं गुपाळा तीरवांन । विरदाळा सिघाळा अड़ाळा जोध चाळाबंध , जूटा बिह, काळा नै बिचाळा जोरवांन । कदमां करगां घाव दाव व्है अभूतकारा उडै फतकारा विखां फुणांरा अमाव । जंद हरी बंध काळीसं घणा जोड़िया जकै संध संध विछौड़िया नंदरै सुजाव ॥ महा भुजंगेसनाथ समाथ खंडियौ मांण , खंभ ठौर भराथ तंडियौ जैत-खंभ । दंडियौ अदंड नीर उचाटां मिटाय डहे , रंजे मित्र फुणाटां मंडियौ नाटारंभ ॥ धू ध कटां ध्रु कटां ध्रु कटां धू धू कटां धार , ता धिंना ता धिंना धिन्ना ता धिंन्ना सुताळ । ताथेई ताथेई थेई थेई थेई ताता ,
गतां लै अहेस माथा नंदरौ गवाळ ॥ ८१. चसमां ( चश्मां )-नेत्र । कराळां-भयंकर, भयावह । प्राग-झाळा-अग्निकी लपट ।
ताळा-ताली, करताली । त्यूं-तैसे । गुपाळा-ग्वाले। तीरवांन-तट पर खड़े । विरदाळा-विरुदधारी, यशस्वी। सिघाळा-श्रीष्ठ । अडाळा-पड़ने वाला। चाळाबंधलड़ने वाला, उत्पाती। जूटा-भिड़े। बिहुं-दोनों। जोरवांन-शक्तिशाली । कदंबांचरणों पैरों। करगां-हाथों। घाव-प्रहार । दाव-पेंतरा। अभतकारा-अभूतपूर्व अनोखा । फूतकारा-सर्पके मुखकी आवाज । विखा-विषों। अमाव-अपार । संघसंधि । बिछोडिया-दूर किया। सजाव-पत्र। भगेसनाथ-कालीनाग। समाथसमर्थ । खंडियौ-खंडित किया, मिटाया। मांण-गर्व, मान। खंभ-भजा, बाहमूलके ऊपरका भाग, कंधा। ठौर-ठोक कर । भराथ-यूद्ध । तंडियो-जोशपूर्ण आवाजकी। जैत-खंभ-विजयी, विजयस्तंभ । अदंड-जिसे कोई दंड न दे सकता हो। उचाटां-चिंता, भय । रंजै-प्रसन्न कर। फुणाटां-सर्पके फनों। मंडियौ-रचा, किया। नाटारंभनत्य, नाच । गतां-वाद्योंके बजानेकी प्रणाली विशेष या नत्यकके नत्यकी गति विशेष । अहेस-ग्रहीश नागराज ।
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