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________________ २०८ ] रघुवरजसप्रकास रंमां-झमां रंमां झंमां रंमां झमा झमां रंमां , ठमंकां रमकां झंका रमकां ठमक । पाड़गती गीत राधा रंजणा पयंपै प्रथी , नाग धू संजणा निमौ संगीत निसंक ॥ ८१ ____ अथ त्रिवड़ तथा हेलौ नाम गीत लछण दूहा आठ तीस मत पूबअध, उतरारध अठतीस । तुक विहं वै अघ तेवड़ी, तेवड़ गीत तवीस ॥ ८२ पहली दूजी तुक मिळे, तीजी छठी मिळत । मिळ चौथीसं पंचमी, जस रघुनाथ जपंत ॥ ८३ प्ररथ जी गीतके अठतीस मात्रा पूरबारध होय अर अठतीस ही मात्रा उतरारध होय । समांन दो ही अरथ होय । तीन तुक पूरबारध होय, तीन तुक उतरा'रध होय । तेवड़ी तुकां होय । सारा दूहामें तुक छ होय । पैली तुकको तुकांत तो दूजी तुकसू मिळे । तीजी तक छठी तुकसं मिळे । चौथी तुक पांचभी तुकसूं मिळे । तेवड़ी तुकां हर तेवड़ौई तुकांतको मिळाप जींसू गीतको नाम तिवड़ अंत लघु कहीजै । कोई कवि इण गीतनै हेलो पिण कहै छै । अथ त्रिवड़ तथा हेला नांम गीत उदाहरण गीत रांम असरण सरण राजै । भेटियां दुखदुंद भाजै ॥ ८१. रंमां-झमां-चलने या नत्यके समय आभूषणोंकी होने वाली ध्वनि । ठमकां-चलते समय या नत्यके समय पैर रखनेका ढंग विशेष । रंजणा-प्रसन्न करने वाला। पयंपै-कहता है, कहती है। धू-शिर, मस्तक । संजणा-करने वाला। ८२. पाठतीस-अड़तीस । पूबअध-पूर्वार्द्ध । विहुंवै-दोनोंमें । तेवड़ी-तिगुनी, तीन तहका। तवीस-कहा जायेगा, कहा जाता है। ८३. दूजी-दूसरी । मिळंत-मिलती है। जपंत-जपता है, जपा जाता है। जी-जिस । पर अोर । मिळाप-मिलना । जींसू-जिससे । पिण-भी। ८४. राज-शोभा देता है। भेटियां-मिलने पर। दुखदंद-दुख-द्वन्द । भाजै-मिट जाते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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