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________________ २०४ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ जिणरै पादरी तुक मात्रा अठारै होय, तुक दूजी मात्रा दस होय । तुक तीजी मात्रा सोळह होय । तुक चौथी मात्रा दस होय । दूजा साराई दूहांमें पैली तुक मात्रा सोळ । चौथी तुक मात्रा दस । इण क्रम होवै। तुकंत लघु आखिर होवै जी गीतको नाम सोरठियौ सांणौर कहीजै । अथ गीत सोरठिया सांणौरको उदाहरण गीत सोरठियौ आलम हाथरौ रघुनाथ अचरिज, अवध भूप असंक । दिल गहर दीधी सरण हित दत, लहर हेकण लंक ॥ भभीखण सरण आय भूधर, महर कर मनमोट । धुरधमळ व्रवियौ धनख-धारण, कनकवाळी कोट । भयभीत कंपत सीसदस भय, दीन देख निदान । अवधेस दाटक दियौ आचां, दुरंग हाटक दांन ॥ निरवहण किसना' सरम नह●, असुर दहण असेस । सारवा दासां काम समरथ, निमौ राम नरेस ॥ ७६ अथ सातमौ गीत खुड़द छोटौ सांणौर लछण दूहौ धुर मत्ता अठार धर, दस सोळ दसेण । दु लघु अंत सांणौर लघु, जप खुड़द किव जेण ॥ ७७ ७५. प्रादरी-प्रारम्भकी। दूजी-दूसरी। तीजी-तीसरी । दूजा-दूसरे। साराई-सब ही। दूहां-द्वालों, गीत छंदके चार चरणके समूहों। इण-इस । पाखिर-अक्षर । जी-जिस। ७६. पालम-संसार, ईश्वर । अचरिज-आश्चर्य । गहर-गंभीर। दीधी-दे दी। हेकण एक । भभीखण-विभीषण । भूधर-ईश्वर । महर-कृपा । मन-मोट-उदार । धुर-धमळ-अग्रगामी। प्रवियौ-दान दिया। धनख-धारण-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र भगवान । कनक-सोना। सीसदस-रावण । दाटक-महान । प्राचां-हाथों। हाटक स्वर्ण, सोना । सारवा-सफल करनेको, सिद्ध करनेको। दासां-भक्तों । ७७. मता-मात्रा। दस-तेरह । सोळ-सोलह । दसेण-तेरह । किव-कवि । जेण-जिस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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