SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ ] रघुवरजसप्रकास छंद मिगेंद्र (ल.ग ल. अथवा जगण) नमौं रघुनाथ, सधीर समाथ । गणां गजगाह, दसानन दाह ॥ भभीखण आय, सु प्रास्रय पाय । ब्रवी जिण रंक, लछीवर लंक ॥ १६ ___ छंद मंद (ग.ल.ल. अथवा भगण) । सीत-पती कह, ओघ अघं दह । देह अभै करि, राम रदे धरि ॥ गावत पांमर, झूठ पयंपर । ऊबर सौ वित, काय गमावत ॥२० छंद कमल (ल.ल.ल. अथवा नगण) भगत-विछळ, नयण कमळ । जगत जनक, धरण-धनक ।। सिर नमि नमि, चरण पदम । 'किसन' रसण, रघुबर भण ॥ २१ अथ च्यार अखिर छंद जात प्रतिस्ठा जीरण चरणह च्यार गुरु, धांनी रल पहिचांण । जगण निगल्ली अंत गुरु, संमोहा गुरु बांण ॥ २२ १६. म्रिगेंद्र-मृगेन्द्र । सधीर-धैर्यवान । समाथ-समर्थ । गजगाह-युद्ध। दसानन-रावण । दाह-जलाने वाला, ध्वंशक । भभीखण-विभीषण । प्रास्त्रय (पाश्रय)-शरण, पनाह । पाय-प्राप्त कर । व्रवी-प्रदान की, दे दी। रंक-गरीब । लछीवर-लक्ष्मीपति । लंकलंका। २०. सीत-पती (सीतापति)-श्रीरामचंद्र । अोघ-समूह । अघं-पाप । रदे-हृदय । पामर नीच, तुच्छ । ऊंबर (उम्र)-प्रायु । वित-धन । कांय-क्यों। गमावत-गमाता है, नाश करता है। भगत-विछळ-भक्त-वत्सल । धरण-धनक-धनुष धारण करने वाला। पदम(पद्म) कमल । रसण-जिह्वा, जीभ । भण-कह। २२. प्रतिष्ठा चतुक्षरावत्तिका नाम है जिसके प्रस्तार भेदसे क्रमशः १६ भेद होते हैं। उन सोलह भेदोंके अंतर्गत जीर्णा (मतांतरसे ती) धांनी और निगल्लिका आदि हैं। र ल रगरण पार लघु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy