________________
रघुवरजसप्रकास
[ ३०३ पीत दूकूळ कटी लपटांणौ, बीर अभंग निखंग बंधांणौ । अंस अजेव धनू उरमाणौ, रूप यसै नप रांम ॥ सोहत बाम दिसा निज सौता, बादळ बीज प्रभाव वनीता। पाय खळांहळ गंग पुनीता, की ताखै अघ कोड़े। लोभत कंज सरभ्र लोयण, भाळ सखी नहचै नर-भोयण । आहव खंभ विजै जिम औयण, माणस दोयण मोड़े ॥ जै रघुराज जपै जगजाहर, है उर मांझ निवास सदा हर । सेस धनेस दिनेस स्टै सुर, ईखण जे अभिलाख ।। माथ पगां सुरनाथ नमावै, गौरव सारद नारद गावै । पार गुणां करतार न पावै, सौ स्रति संप्रत साख ॥ मारुति जेण कियौ अजरामर, केकंध भूप सुकंठ दियौ कर। रीझ भभीखण लंक नरेसुर, की जन सारै काज ॥ ऊ करसी चित सोच असंन्नह, सास उसास संभार रसंन्नह । कीरत स्त्रीवर भाख 'किसन्नह', राख रिदे रघुराज ॥२६५
अथ गीत मनमोह लछण
दूही कह दूहौ पहला सुकब, कड़खा ता पर कथ्थ ।
पंथ प्रगट कड़खौ दुहौ, सौ मनमोह समथ्थ ॥ २६६ २६५. पोत-पीला । दूकूळ-वस्त्र । लपटांणी-प्रावेष्ठित । निखंग-तर्कश । धनू-धनुष । सोहत
शोभा देती है। बांभ-बायां । दिसा-तरफ, ओर। बीज-बिजली । वनीता-स्त्री। पायचरण । खळांहळ-जलप्रवाहकी ध्वनि । गंग-गंगा नदी। पनीता-पवित्र । लोभतलोभायमान होते हैं। कंज-कमल । लोयण-लोचन, नेत्र। भाळ-देख । नहचैनिश्चय । नर-भोयण-नर लोक । पाहव-युद्ध । औयण-चरण । मांणस-मनुष्य । दोयण शत्र । मांझ-मध्य। हर-महादेव । धनेस-कुबेर । दिनेस-सूर्य । सुरदेवता। ईखण-देखनेकी। अभिलाख-अभिलाषा, इच्छा। माथ-मस्तक । पगांचरणों। सुरनाथ-इन्द्र । गौरव-यश । सारद-सरस्वती। मारुति-हनमान । जेण-जिस । अजरामर-वह जो न तो बद्ध हो और न मरे, अमर । केकंध-किष्किया। सुकंठ-सुग्रीव। रीझ-दान। भभीखण-विभीषण । ऊ-वह। असंबह-भोजन ।
रसंन्नह-जीभ । भाख-कह । रिदे-हृदय । २६६. ता-उस । कथ्थ-कह ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org