________________
३०४ ]
रघुवरजसप्रकास
प्ररथ पै'लां तौ अंक दूहौ कहीजै। पछै दूहा ऊपर कड़खा छंदरी च्यार तुकां कहीजै। यण तरै अंक अक हौ वणै । यसा च्यार दूहा होवै जिण गीतरौ नांम मनमोह कहीजै। दूहारी तुक प्रत मात्रा तेरै। ग्यारै, तेरै, ग्यारै कड़खारी तुक प्रत मात्रा सैंतीस होय । दुहा कड़खारौ लछण यण ग्रंथमें प्रसिध छै सौ देख लीज्यौ।
अथ गीत मनमोह उदाहरण
गीत
तारै दासां त्रिकमाह, भय वारै जम भूप । हूं बळिहारी स्रीहरी, रै थांने निज रूप ॥
रूप थारौ हरि हरि भूप त्रयलोकरा । मांझ अनूप त्रैभू न मावै ॥ नाग नर देव भूपाय आहुट नथो । गणी बळदाब तळ वेद गावै ॥ दास तन भजन विन तौ सबी दासरथ । थिरू बस कौड़ बाते न थावै ।। देवपत रूप वैराट थारौ दुगम ।
अणु मन सेवगां सुगम आवै ॥ आवै तूं ऊतावळौ, पावै दास पुकार । धारण गिर ज्यूं धांमियो, बारण तारण बार ॥
वार वारण तिरण करण कारण विसन । घरण तज तरण ब्रद चीत घालै ॥
२६७. त्रिकमाह (त्रिविक्रम)-विष्णुका एक नाम । वार-दूर करता है। मांझ-मध्य, में ।
भू-तीन भवन, त्रिभुवन । देवपत-विष्णु। वैराट-महान, बड़ा। दुगम-दुर्गम । सुगम-सरलता से । ऊतावळौ-शीघ्रतासे। पावै प्राप्त करता है। बारण-हाथी । बार-अवसर, समय । विसन-विष्णु। घरण-गृहिणी, स्त्री।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org