________________
रघुवरजसप्रकास
मंद लख वाह सुपरण तजे मागमें |
चरण ऊबांह धरण
चाले ||
Jain Education International
[ ३०५
हरोली |
हरण नकण व सुदरसण पाय तंता गरण छिद अपाळ ॥ खंड जळवार गिरधार आरत खटक | फटक करतार करतार झाले ॥ झाले भुजडंड झूसरी, मार कुंड यर मांग । भांज रांम कोडंड भव, प्रचंड खित्रीवट पांण ॥ पांग खित्रीवट घट मित्र जग पायौ 1 रिख त्रिया तिरी रिखदेव रंजे ॥ जानकी व्याह उछाह पर धनुख जिग । सुज नूपत नग आरंभ संजे ॥ सैबळ भूप न जनक मन दुमन लख । भुजां बळ दासरथ चाप भंजे ॥ बांण दसमाथ भ्रगुनाथ दे दबोह | गाव रघुनाथ खळ साथ गंजे ॥ गंजे रिम केतां गरब, धार सरब बद घेठ । दे कौड़ां दुजबर दरब, जीत परब जग-जेठ ||
२६७. वाह - गति. चाल, वाहन । सुपरण- गरुड़ । मागमें मार्ग में । ऊबहिण - बिना वाहन या बिना पैरोंमें जूती पहने हुए । धरण-भूमि । हरण - मिटाने को । नक्रण- मगर, घड़ियाल | सुदरसण - सुदर्शन चक्र । हरोली- ग्रग्र, अगाड़ी । भटक- शीघ्र | भांजतोड़ कर । कोडंड-धनुष । भव- महादेव । खित्रीवट -क्षत्रियत्व । पांण-बाहु, भुजा,
।
हाथ | श्रघट - अपार । मित्र - विश्वामित्र । जग-यज्ञ । पाळियौ-रक्षा की। रिखऋषि । त्रिया - स्त्री । रंजे प्रसन्न हुए । व्याह - विवाह । पण-भी, परन्तु । धनखधनुष । जिग-यज्ञ । लसै शोभा देते हैं प्रन - अन्य । दुमन खिन्न उदासीन । लखदेख कर । दासरथ - श्रीरामचंद्र भगवान । चाप - धनुष । बांण - बाणासुर राक्षस । दसमाथ - रावण । भ्रगुनाथ- परशुराम । श्राद- प्रादि । बोह-बहुत । खळ- असुर । साथ-समूह | गंजे - नाश किया, मिटाया । रिम-शत्रु । केतां- कितनोंका । गरबगर्व । ब्रद- विरुद | घेठ-जबरदस्त । कौड़ां-करोड़ों । दुजबर - ब्राह्मण । दरब-धन, द्रव्य ।
परब-उत्सव, यज्ञ । जग-जेठ-ईश्वर, श्रीरामचंद्र भगवान ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org