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रघुवरजसप्रकास
जेठरा भांग सम सह बरफांग जम | मांण दुजरांण असहांग मारे ॥ किता जुध जीत ग जीत नहचळ कदम । सेवगां प्रीत कर काज सारे ॥ रोपियां दास यर जास कीधा सरद । धींग रविवंस भुज बिरद धारे || रटै कवि 'किसन' महराज तन लाज रख । ते रघुराज के संत तारे ॥ २६७
दूजा दूहारौ
रथ
वाणी धारी आरतरी जिण खटक क्रोध पर जळचर ग्राहनै खंड्यौ न करतार कर झाले हाथ पकड़ कर हाथीने तारयौ झटक सताबीसू - इति प्ररथ ।
अथ गीत ललितमुकट लछण दूहौ
प्रथम दूहौ कर तास पर, दाख त्रिभंगी छंद । ललित मुकट जिमसीहलख, कह जस रांम कव्यंद ॥ २६८
श्ररथ
पैली हो कही । जठाउपरांत दूहा पर त्रिभंगी छंदरी तुक च्यार कहीजै । यण तरै च्यार ही दूहा होय । सिंघावलोकण तरै तुक होय जिण गीतरौ नांम ललितमुकट कहीजै । दूहारौ नै त्रिभंगी छंदरौ लछण या ग्रंथ में प्रसिद्ध छै जिणसूं प्रठे दूहारी नै त्रिभंगीरौ लछण न कह्यौ छै ।
२६७. जेठरा- जेष्ठ मासका | भांग सूर्य । सम-बराबर, समान । श्रसह शत्रु । बरफांणबर्फ, हिम । जम- एकत्रित । मांण - गर्व । दुजराण - परशुराम । श्रसहांण-शत्र ु, शत्रु राजा । श्रगजीत-विजयी । नहचळ - निश्चल, ग्रटल । कदम-चरण । सेवगांभक्तों । प्रीत-प्रीति, प्रेम काज कार्य । सारे सफल किये । यर-शत्रु । कीधाकिये । सरद - पराजित | धींग -जबरदस्त, समर्थ । तेण उस के कई । तारेउद्धार किये । वांणी - पुकार । प्रारतरी-दुखीकी । खटक - क्रोध | खंड्यौ - मारा । सताबी- शीघ्र |
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२६८. तास-उस । दाख- कह ।
जठाउपरांत - तत्पश्चात ।
कव्यंद ( कवीन्द्र ) - महाकवि ।
सीहलस - सिंहावलोकन | यण- इस । तरै- तरह, प्रकार
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