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रघुवरजसप्रकास
सुचित धंका जनां निवारण सांकड़ा । वाह रघुनाथ लंका लियण बांकड़ा ॥ २५८
अथ दुतीय गीत झड़मुकट लछण
खुड़दतणै तुक अग्ग पछ, देह झमक दरसाय । जिणनूं दूजौ झड़ मुकट, रटै वडा कविराय ॥ २५६
खुड़द गीत छोटौ सांणोर होय ! पैली तुक मात्रा अठारै । दूजो तुक मात्रा तेरै। तीजी तुक मात्रा सोळे नै चौथी तुक मात्रा तेरै होय । तुकांत दोय लघु होय सौ खुड़द गीत कहावै । जी खुड़द गीतरी सोळे ई प्रत तुकरै पाद अंत जमक होय सौ गीत बीजौ झड़मुकट कहावै । अंक प्रागै कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । सावझडौ छै।
अथ गीत झड़मुकट उदाहरण
गीत रेणायर मथण मथण रेणा यर, भर धर टाळण समर भर । कर जन साता जगत अभै कर, वरदाता जानकीवर ॥ सारंग पांण बांण तन सारंग, धरणसुता धव खग धरण । वारण जम भै तारण वारण, करण प्रसुण अघ सुख करण ॥ धर ध्रम चाळण घरम धुरंधर, कमळ पांरण मुख चख कमळ । नायक अकह जांनुकी नायक, अचळ तार दध जुध अचळ । २५८. धंका-इच्छा · बांकड़ा-बाँकुरा ।। २५६. जी-जिस । झमक-यमकानुप्रास । बीजो-दूसरा । २६०. रेणायर-समुद्र। मथण-मंथन । रेणा-पृथ्वी । यर-शत्र । भर-बोझ । धर
पृथ्वी। टाळण-दूर करने वाला। समर-यूद्ध। साता-कुशल । वरदाता-वरदान देने वाला । जानकीवर-सीतापति, श्रीरामचंद्र भगवान । सारंग-धनुष । बांणतीर । सारंग-बादल, मेघ। धरण-सुता-सीता। धव-पति । खग-तलवार । वारण-मिटाने वाला। जम-यमराज। भै-भय। तारण-तारने वाला। वारणहाथी । पाण-हाथ। चख-चक्ष, नेत्र । प्रचळ-पर्वत । दध-उदधि, समुद्र । प्रचळ-हढ़, अटल ।
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