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रघुवरजसप्रकास
[ २६६ रारियां सुभट तूट दमंग रीसरा । त्रिलोचण जिसा खुटै नयण तीसरा ॥ सिर कसै ऊकसै लसै भुजगीसरा । जोय दससीस थट कीस जगदीसरा ॥ दहल पुर नयर पूगी महळ दोयणां । भय रहित किया सुर नाग नर-भोयणां ।। उमंग जुध करग चंचळ अचळ औयणां । लेख लंकेस अवधेस दळ लोयणां ।। मांन पीव वचसूप ससमाथनै । हर चरण जाह जुड़ दूणदसहाथनै ॥ कुळ अनेक करै निज सुधारै काथनै । नांम तौ माथ दसमाथ रघुनाथनै ॥ २५७ .
अथ गीत अरध सावझडौ उदाहरण [ऊपरला सावझड़ा गीतनै दुमेळ कर पढणौ तथा दरसावां छां]
गीत कमर बांधियां तूण सारंग गहियां करां । सकर खग दांन जेहांन ऊचासरा ॥
२५७. रारियां-नेत्रों । दमंग-अग्निकरण । त्रिलोचण-शिव । खूट-खुलते हैं ।
भुजगीसरा-शेषनागके । जोय-देख कर । दससीस-रावण । थट-समूह, दल । कोसवानर । दहल-धाक, रौब । नयर-नगर । पूगी-पहुंच गई। दोयणां-शत्रुओं । सुर-देवता । नर-भोयणां-नर लोक, संसार । करग-हाथ । प्रौयरणां-चरणों, पैरों। लेख-देख कर, समझ कर। लंकेस-रावण । अवधेस-श्रीरामचन्द्र भगवान । दळसेना) लोयणां-तेत्रों, लोचनों। पीव-पति । वच-बचन । ससमाथ-समर्थ, शिव । दुणदसहाथ-रावण। काथन-वैभवको। नाम-झुका दे। तौ-तेरा। माथमस्तक । दसमाथ-रावण । ऊपरला-उपर्युक्त, ऊपर का। दुमेळ-बह छंद या पद्य
जिसके प्रथम दो चरणोंकी तुकबंदी हो। २५८. तूण-तर्कश। सारंग-धनुष । गहियां-पकड़े हुए। करां-हाथों। जेहांन-संसार ।
ऊंचासरा-श्रेष्ठ ।
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