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रघुवरजसप्रकास
वारता गीत पालवणी १, गीत झड़लुपत २, गीत दुमेळ ३, गीत त्रबंकड़ौ ४ नै सावक अडल, श्रे पांच छोटे सांणोररी विखम तुक पै'ली, तुक तीजी श्रे विखम तुक त्यांरा वणै नै यतरा गीतारै तुक प्रत सोळ मात्रा हुवै नै मोहरामें तफावत होय । कठे'क गुरु तुकांत कठे'क लघु तुकांत होवै नै यतरा गीत बडा सांणोररी विखम तुकारा वणे, सावझड़ो परध सावझड़ौ प्राद। तुक प्रत मात्रा बीस होय । पै'ली तुक मात्रा तेवीस होय ।
अथ गीत वडा सावझड़ा तथा अरध सावझड़ा लछण
दूहौ
मुण धुर तुक तेवीस मत, अवर वीस रगणंत । मिळ चव तुक वड सावझड़ौ, दुमिळ अरध दाखंत ॥ २५६
प्ररथ गीत बडौ सावझड़ी नै अरध सावझडौ दोन्यूई वडा सांणोररी विखम तुक पै'ली तीजोरा हुवै। पै'ली तुक मात्रा तेवीस । बीजी तुक मात्रा बीस और सारा ही तुकां मात्रा बीस होय । तुकांत रगण पावै नै च्यारू तुकारा मोहरा मिळे सौ वडौ सावझडौ नै अरध सावझड़ारै दोय तुकांत मिळे नै कठेक रगण तुकांत आवै, कठे'क गुरु करणगण तुकांत पावै ौ भेद सौ अरध सावझडौ कहावै ।
अथ गीत वडौ सावझड़ौ उदाहरण
गीत लछग कसीसै भुजां धांनंख दध लाजरा । गोम नभ धड़ड़ आनंक जय गाजरा ॥ सझण पारंभ किय उछव सांमाजरा ।
रे असुर देख आरंभ रघुराजरा ॥ २५६. मुण-कह । अवर-अन्य । रगणंत-जिस पद्य के चरणके अंतमें रगण हो। चव--
चार। दाखंत-कहते हैं। नै-और। दोन्यूई-दो ही, दोनों ही। बीजी-दूसरी ।
कठेक-कहीं पर। करणगण-दो दीर्घ मात्रा का नाम । २५७. लछण--लक्ष्मण । कसीस-धनुषकी प्रत्यंचा चढ़ाता है। धांनंख-धनुष । दध
(उदधि) सागर। गोम-पृथ्वी । धड़ड़-ध्वनि हो कर, गर्ज कर। प्रानंक-नगाड़ा। पारंभ-तैयारी। प्रारंभ-तैयारी।
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