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रघुवरजसप्रकास
[ ३०१ धन अन विलस जनम मानव धन, म कर ईरखा तन मकर । सर पर कियौ चहै व्है जग सिर, धर निज मन रघुवर सधर ॥२६०
अथ गीत दुतीय सेलार लछण
दूहौ धुर अठार सोळह सरब, सावझड़ौ अध सोय । अलंकार विध चतुर तुक, सख सेलारह सोय ॥ २६१
प्ररथ
अंक सेलार गीत तौ पैली कह्यौ अर दूजारौ यौ लछण छै। पै'ली तुक मात्रा अठारै और सारी तुकां मात्रा सोळे सोळ होय । गुरु लघु तुकंतरौ नेम नहीं पण गुरु तुकंत बोहोत होय । चौथी तुकमें कह्यौ सब्दारथ फेर कहणौ विधअलंकार होय, जी गीतनै दुतीय सेलार गीत कहीजै ।
अथ गीत सेलार उदाहरण
गीत चित करणी म्रखा दिसी नह चाहै, आप विरदचा पखा उमाहै। पतित खीण कुळहीण अपारै, तारै रे सीतावर तारै ॥ कळिया दुख सागर जन काढे, विपत रोग अघ आगर बाढै । नातौ दीनदयाळ निहाळे, पाळे रे संतां हरि पाळे ॥ अजामेळ सा घोर अधम्मी, नारी गणिका भील निकम्मी। असरण दीन अनाथ अथाहै, साहै रे माधौ कर साहै ।।
२६०. धन-धन्य । म-नहीं। ईरखा-इर्ष्या । २६१. अध-प्राधा, अद्भ। सोय-वह, उस। सख-कह । सारी-सब । बोहोत-बहुत ।
जी-जिस । दुतीय-द्वितीय । २६२. म्रखा (मृषा)-असत्य, व्यर्थ । खीण-क्षीण । अपार-अपार । सीतावर-श्रीरामचंद्र ।
कळिया-डबा हा, मग्न । जन-भक्त। काई-निकालते हैं। प्रध-पाप । प्रागर-समुह । बाढे-काटते हैं। नातौ-संबंध, रिश्ता। निहाळे-देखते हैं। पाळ-पालन-पोषण करते हैं। अधम्मी-अधर्मी । निकम्मी-बेकार, नीच । साहै-उद्धार करते हैं । माधौमाधव, विष्ग्ग।
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