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________________ रघुवरजसप्रकास .. [ १२६ मगण भगण फिर सगा मुणि, पायत छंद प्रकास । गण बे दुजबर एक गुर, रति पद सौ सुख रास ।। ६२ छंद पायत (म.भ.स.) तौ पै धूळी सिल तरगी, वारी सारै हि......। ऊ ही राघौ तरणि उडै, छै य्यौ साकौ स कुळ छुडै ॥ धोवौ पै तौ कदम धरौ, कै कीरौ के करौ॥ ६३ ___ छंद रतिपद (८ ल.ग. अथवा न.न स ) धरण कर धनक है, जगत सह जनक है। समर कळतरस है, सुज जनम सरस है ।। ६४ न स य बिंब तोमर सगण, यक बे जगण स कोय । च्यार करण गुरु एक सौ, रूपा-माळी होय ॥ ६५ छंद बिंब (न.स.य.) मुण महण तार माथै, सुज गिरवरां समाथै । खळ सबळ वंस खोयो, जग सरब तेण जोयौ ॥ जस 'किसन' ते जपीजै, लभ रसण देह लीजै ॥ ६६ ६२. मुणि-कह कर । पायत-एक छंदका नाम, इस छंदका दूसरा नाम पाईता भी है । बे (द्वे) दो। दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । ६३. तौ-तेरे । पै-पैर । सिल-पत्थर । वारी-जल । ऊही-ऐसे ही। राघौ-श्रीरामचंद्र भगवान । तरणि-नौका, नाव। छुडै-छूट जाय । तौ-तब । कदम-चरण । ककड़ता है। कीरौ-कीर, धीवर, मल्लाह । कै-या, अथवा । करद-किराया या कर देने वाला। ६४ धरण-धारण किए हुए। कर-हाथ । धनक-धनुष । जनक-पिता। समर-स्मरगा कर । कळतरस (कल्पतरु)-कल्प वृक्ष । सरस-सफल । ६५ न स य-नगण सगरण यगणका संक्षिप्त रूप। बिब-एक छंदका नाम । यक-एक। करण दो दीर्घ मात्राका नाम ऽऽ । रूपामाळी-एक छंदका नाम । ६६. महण-महार्णव सागर, समुद्र । माथ-ऊपर । समाथै-समर्थ, महान । खोयौ-नाश किया। जोयौ-देखा। ते-उसका । जपीज-जप, जपना चाहिए। लभ-लाभ । रसणजिह वा, जीभ । देह-शरीर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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