SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ ] रघुवरजसप्रकास वारता जीके चार ही तुकां पंचमौं ग्रखिर लघु ग्रावै, ग्ररु छठौ ग्राठमौ गुरु प्रावै, दूजै, चौथे, सातमौ लघु प्रावै, च्यार ही तुकां सौ ग्रनुस्टुप छंद छै । पैलौ तीजौ छिरको गुरु लघुकौ नेम ही नहीं, गुरु आवै भावे लघु, पंचमौ श्रखिर च्यार ही कां लघु, छठौ च्यार ही तुकां गुरु । दूजी चौथी तुकरा सातमौ अखिर लघु व सौ स्टुप के छै । छंद अनुष्टुप राघव जपतौ प्रांणी, मूढ आळस मां करै । श्रव दर आळपं, चेता अंध सचेत रे ॥ ५८ अथ बहती जात नव-अखिर छंद वरणण दूहौ महालिछमी पद मही, तीन रगण दरसंत | दुजबर कराह सगण दखि, सारंगिका लसंत ॥ ५३ छंद महालक्षमी ( र. र. र. ) रांम राजै रसा रूप रे, नेतबंधी वगै नूप रे I सीत वाळ पती साचरे, रे मना जेाहं राच रे ॥ ६० Jain Education International छंद सारंगिका ( ४ ल. ग. ग. स. अथवा न. य. स.) बिलकुल सीतावर रे । रघुबर भीली कर रे, रुचि करकंधू फळ रे, जमि हसि पीधौ जळ रे ॥ ६१ ५८. मूढ-मूर्ख । मां-मत । आव आयु, उम्र । दरब- ( द्रव्य) धन-दौलत । ग्राळ (अल्प ) - अल्प, कम । चेता- चितसे । महालिछमी - महालक्ष्मी । पद-चरण । ५६. बहती - ( बृहती ) | नव- श्रखिर - नवाक्षर वृत्ति। मही में | दरसंत - दिखाई देते हैं, देखे जाते हैं । करणह-दो दीर्घ मात्राका नाम | दखि कह कर । लसंत-शोभा देता है, शोभा देती है । दुजवर-चार लघु मात्राका नाम । 1 । । नेतबंधी - अपना निजका ६०. महालक्षिमी - महालक्ष्मी राजे - शोभा देता है रसा- पृथ्वी भंडा या ध्वजा रखने वाला, वीर । सीत-सीता । वाळौ -का जिससे । राच - अनुरक्त या लीन रह । | मना - मन । जेणहूं ६१. भीली - भिल्लनी । कर हाथ। सीताबर- सीतापति, श्रीरामचंद्र । बेरका फल या वृक्ष, बदरीफल । जमि खा कर । हसि-हँस कर । For Private & Personal Use Only करकंधू ( कर्कन्धु) - पीधौ - पिया | www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy