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रघुवरजसप्रकास
छंद तोमर (स.ज.ज.) कटि तं ण चाप कराग, खळ भंज रावण खाग। पह सिद्ध बंधण पाज, मनमोट स्री महराज ॥ तिय जांनुकी भरतार, कुळमौड़ भू करतार । जप पात तू अठजांम, रिव वंस ओपम राम ॥ ६७
छंद रूपमाली (६. ग. अथवा म.म.म.) आपे लंकासी मौजां यं ही, तौ जेहौ आखां दाता तं ही। थूरै जंगां के दैतां थौका, झोका मौका जी राघौ मौका ॥ ६८
अथ दस अखिर छंद वरणण जात पंक्ति
दूहौ
एक सगण बे जगण गुरु, संजुतका सौ गाय। चंपक माळा भ म स गुरु, त्रिभग सारवति ठाय ॥ ६६
छंद संजुतका (स.ज.ज.ग.) जय राम संत सिहायकं, घण देत आहव घायक। मिथळेस राजकुमारयं, उरहार प्रांण अधारयं ॥
६७. कटि-कमर । तूंण (तूरण)-तर्कश, भाथा । चाप-धनुष। कराग (कराग्र)-हाथमें ।
खळ-राक्षस। भंज-नाश कर। पह-प्रभु । सिद्ध-सफल, प्रयत्न । पाज-सेतु । मनमोटउदार । तिय-स्त्री। जानकी-सीता। कुळ मौड़-कुलश्रेष्ठ । भू-भूमि। पात (पात्र)-कवि । अठजांम-अष्ठ याम, आठों पहर । रिव (रवि)-सूर्य । प्रोपम-शोभा,
कांति । ६८. प्रापे-दे दी, प्रदान कर दी, अर्पण कर दी। लंकासी-लंकाके समान । मौजां-दान ।
यंही-ऐसे ही। तौ-तेरे। जहौ-जैसा। अाखां-कहता है। दाता-दातार । थरैनाश करता है, संहार करता है। देतां-दैत्यों। जंगां-युद्धोंमें। थौका-समूह । झोका
धन्य-धन्य । ६६. संजुतका-एक छंदका नाम, इसका दूसरा नाम संयुत भी है। भ म स-भगण, मगरण,
सगरणका संक्षिप्त रूप । त्रिभग-तीन भगरण और एक गुरुका संक्षिप्त नाम । तारबति-एक
छंदका नाम । ७०. सिहायक-सहायक । घण-बहुत, अधिक । दैत-दैत्य । पाहव-युद्ध । धायक-नाश
करने वाला। मिथळेस-राजा जनक । राजकुमारयं-राजकूमारी। अधारयं-प्राधार ।
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