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रघुवरजसप्रकास अथ हल्लव नाम कवित लछण
वीस वीस चौतुक अखर, बेतुक कह बावीस । हल्ल सबद वरणै सुमझ, हल्लव नाम कहीस ॥ २५४
अथ हल्लव नाम कवित उदाहरण हल हल्लिय गिर आठ, सपत हल्लिय जळ सायर । धूजह हल्लिय धरण, गिरद हल्लिय नभ छायर । सिर हल्लिय अध सेस, हहर चित्त कछप हल्लिय ।
हल्लिय दाढ़ वराह, दुसह हल हल्ल दहल्लिय । हल हल्लिय लंक गढ़ बंकसौ दस-धू पै हल काहल्लिय । हल्लिय पताख गजराज पै, विजै कटक राघव हल्लिय ॥ २५५ अथ कवित छप्पै नाम ताळू रब्यंब लछण
दहौ । लागै पढ़तां ताळवै, जीहा अग्र जरूर । कहजे छप्पय 'किसन' कवि, तिको ब्यंब ताळ र ॥ २५६
__अथ ताळू रव्यंब छप्पै उदाहरण रट रट रे नर ईस, नाय औणे जिण सीसं । चाळ झाल कर चहू, देस ईछत जगदीसं ॥ ईस अचळ सरणाय रीझ इज्जत द्रढ़ रक्ख्य ण ।
दट दट अक्रत दूठ, ईस नां छोड अधक्खरण ॥ २५४. चौतुक-चार तुक । २५५. हल हल्लिय-चलायमान हुए। सपत-सप्त, सात । सायर-सागर, समुद्र । धूजह
ध्रुव । वराह-विष्णुका एक अवतार विशेष । दहल्लिय-भयभीत हुए, कंपायमान
हुए । दस-धू-दश शिर वाला रावण । २५६. ताळवै-तालु, तालू । जीहा-जिह्वा । तिको-वह । ब्यंब ताळूर-तालूर व्यंब । २५७. नाय-नमा कर। औणे-चरणोंमें। सरणाय-शरण देने वाला। रक्ख्यण-रखने वाला।
दट-नाश कर । अक्रत-दुष्कर्म, पाप । दूठ-दुष्ट, भयंकर । नां-नहीं। अधक्खण
अधक्षरण ।
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